निरंतर आनंदमय स्थिति में रहने के लिए पाँच बातों का ध्यान रखें

0
210

कोई भी गुरू व संत अपने नाम के आगे क्रआनंदञ्ज शब्द को जोड़ते हैं, जैसे कि निजानंद महाराज, परमत्यागी परमानंद जी, केशवातीर्थ केशवानंद जी आदि-आदि। ये आनंद एक ऐसा गुण है जिसकी सभी को चाहना रहती है। आनंद चाहिए तो सभी को, परंतु कहाँ से मिलेगा उसका कोई बिग बाज़ार तो है नहीं कि वहाँ से खरीद कर ले आवें! फिर भी हम आनंद की खोज जीवन भर करते रहते हैं।
आनंद प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से पाँच नैतिक सद्गुणों को अपने जीवन में अपनाने की, पाँच मानसिक प्रक्रियाओं को अंकुश में रखने की तथा पाँच आध्यात्मिक प्रवृत्तियां हर रोज़ करने की ज़रूरत है। ये बात नि:संशय है।
पाँच सद्गुण जो कि आपके जीवन में आनंद को प्रचुरता से परिपूर्ण कर देंगे, वो हैं कृतज्ञता, सच्ची प्रशंसा, क्षमा, स्वीकृति और करुणा। लोगों के छोटे से छोटे उपकार के लिए उनका आभार मानें। उनके कार्य की सच्चे दिल से प्रशंसा करें। कृतज्ञता और प्रशंसा आपके जीवन में चमत्कारिक रूप में बदलाव ला देंगे। ये साधारण दिखने वाली वस्तुएं आपके जीवन में बाहुल्य और कृपा भर देंगे। सदा मीठा, मधुर व सत्य ही बोलें। क्रक्षमाञ्ज क्रोध को मारने का एक परम-शस्त्र है। कोई आपको कष्ट दे तो उसे क्षमा कर दें। सच्चे होने के बावजूद भी दयालु होना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। क्षमा, ये खुशी की महत्त्वपूर्ण चाबी है। जो पहले क्षमा करे वो सच में बड़ा बहादुर है। लोगों पर करुणा करें और आपकी क्षमता के अनुरूप उनकी मदद अवश्य करें।करुणा, प्रामाणिकता और अन्य के प्रति आदर, ये मानवता के बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमुख अंग हैं। किसी की भी टीका-टिप्पणी नहीं करें। जीवन-काल इतना छोटा है, लोगों को प्रेम करने का भी समय नहीं मिलता तो दूसरों की टीका-टिप्पणी करने के लिए कहाँ से मिलेगा!
दूसरों के साथ अपनी तुलना न करें। प्रेम बांटे और अपने पास जो भी वस्तु आदि है उससे प्रेम करें। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात ये है कि, स्वीकार करें कि बहुत सारी वस्तुओं को आप बदल नहीं सकते। इसे अंत:करण से स्वीकारें। स्वीकृति एक बहुत बड़ा गुण है।
पाँच मानसिक प्रक्रियाओं पर नियमन आपको आंतरिक शक्ति और सुख प्रदान करती है। और वो हैं, तृष्णा, विचार, इच्छाएं, अहं और वर्तन। परमानंद आपका निजानंद बना रहे, इसके लिए राग, द्वेष और तृष्णा से दूर रहें और विचारों को नियंत्रित एवं शुद्ध व श्रेष्ठ रखें। विचारों के द्वारा ही हम अपने ब्रह्माण्ड और भविष्य का निर्माण करते हैं। एक-एक विचार व संकल्प आपके शरीर के प्रत्येक कोष पर असर डालता है। इसलिए अपने विचारों पर काबू रखें।
इसके साथ-साथ अपनी इच्छाओं को कम करना बहुत ज़रूरी है। इच्छा एवं आसक्ति, दु:ख का मूल कारण है। हमें अपना क्रोध, लोभ, ईष्र्या जैसे विकारों को काबू में कर सकारात्मकता में परिवर्तित कर देना चाहिए। अपने वर्तन को सकारात्मक रखना भी अति आवश्यक है। सत्य तो यह है कि हमारे साथ जो घटनायें घटित होती हैं उसका प्रभाव हमारे पर सिर्फ दस प्रतिशत है। नब्बे प्रतिशत असर तो उस घटना के प्रति हमारी प्रतिक्रिया कैसी है, उस पर निर्भर है। विशेष रूप से हमें विनम्र होकर, अहंकार का त्याग करना चाहिए। अहंकार और क्रोध हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। अहंकारी किसी के पास जाता नहीं है और क्रोधी के पास कोई आता नहीं है। अहंकार और क्रोध सम्बंधों और परिवार का नाश कर देते हैं। ये सब मानसिक प्रक्रियाएँ हमारे अपने स्वभाव को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसीलिए हम इन सभी मानसिक प्रक्रियाओं को जितना हो सके काबू में रखें।
हमने जाना कि परमानंद, परम शांति व सुख पाने के लिए हमें क्या-क्या अपनाना है और क्या-क्या छोडऩा है तथा क्या-क्या नियंत्रित करना है। हम सभी परमानंद को निजानंद बनाने के लिए यदि इन सिम्पल बातों को ध्यान में रखें तो कितना अच्छा हो! परम सुख और परमानंद का एड्रेस हमारे भीतर, हमारे पास ही मौजूद है। पर कभी हमने इसे जानने की चेष्टा ही नहीं की और ना ही हमारा ध्यान इस ओर गया। हम ढूंढते रहे बाहर, सम्बंधों में, पैसों में, प्रकृति में, पूजा-अर्चना में। किन्तु अब, यदि हम सभी परमानंद के इच्छुक, छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें जैसे कि दूसरों का आभार व्यक्त करना, प्रशंसा करना, अपने अहंकार का त्याग करना और अपने संकल्पों को नियंत्रित रखना, तो परमानंद ही हमारा निजानंद हो जायेगा। ठीक है ना! समझ में आ गया ना! उसे कैसे पाना है!

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें