प्रश्न : मैं श्रीरामपुर से, भक्ति माली हूँ। भक्ति में लोग मंत्र जाप करते हैं और आप लोग राजयोग सिखाते हैं,दोनों में अन्तर क्या है?
उत्तर : मंत्र जाप भी आज कितने लोग करते हैं। मेरे से बहुत भक्त लोग मिलते हैं और मैं जब उनसे पूछता हूँ कितनी माला फेरते हो, क्या सचमुच माला पर, मंत्र पर मन लगता है? क्योंकि जब माला कुछ जप रहे हैं, मंत्र भी याद आ रहा है और मन कहीं ओर भी भाग रहा है। ऐसा भी होता है कि मंत्र को छोड़कर कुछ और ही करने लगें, कभी इधर-उधर देखने लगें। वो काम हुआ है या नहीं हुआ है। देखिए मंत्रजाप भी वास्तव में सच्चे मन से नहीं किया जा रहा है। लेकिन मंत्र जाप का महत्त्व मैं सबके सामने अवश्य रखूंगा। मंत्रों में बहुत शक्ति होती है। लेकिन मंत्र जाप का यथार्थ उच्चारण, एक तो इसका महत्त्व है। क्योंकि उससे कुछ वेव्स निकलनी चाहिए। जो वेव्स वहाँ तक पहुंचेगीं, जिनके हम उन मंत्रों का जाप कर रहे हैं। दूसरी चीज़ ये है कि शुद्ध मन से किया जाये। अगर शुद्ध मन नहीं है तो मंत्रों की शक्ति भी ज्य़ादा काम नहीं करेगी। तीसरी बात, यदि मंत्रों का उच्चारण बार-बार किया जाये बहुत ही एकाग्रता के साथ तो मन पूरी तरह शांत हो जाता है। शांत मन से बहुत एनर्जी जनरेट होती है। ये इसका फायदा है। इसीलिए मंत्र शक्ति के बहुत चमत्कारिक प्रभाव प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के द्वारा देखे गए और दिखाए गए। लेकिन आज वो शक्ति लोगों में नहीं रही क्योंकि इसके पीछे पवित्रता का बल चाहिए। तो वो तो अब लोगों में रहा नहीं।
लेकिन राजयोग, ये तो सीधा परमात्मा से मिलन है। राजयोग परमात्मा की खोज नहीं है, उससे मिलन है। और इस राजयोग की विशेषता यही है कि ये राजयोग की विद्या स्वयं भगवान योगेश्वर ही देते हैं। ये मनुष्यों के द्वारा दी ही नहीं जा सकती। क्योंकि मनुष्य को न आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान है और न परमात्मा का। वो परमात्मा कहते तो हैं लेकिन वो क्या हैं, कहां हैं, उसका स्वरूप क्या है, उसके गुण क्या हैं, उसके कत्र्तव्य क्या हैं। उसका बोध मनुष्यों के पास नहीं होता। हम कौन हैं, ये तो खोज ही बनी रही संसार में। हमारे दर्शनों में और हमारे जो ऋषि-मुनि रहे हैं वो भी खोज करते रहे कि आखिर तुम हो कौन! लेकिन परमात्मा आकर बहुत ही स्पष्ट ज्ञान हमें दे देते हैं। हम आत्मायें हैं, देह भान से न्यारे हो जाओ। पहली जो इम्र्पोटेंट चीज़ होती है स्वयं को इस बॉडी कॉन्शियसनेस से परे करना। बॉडी कॉन्शियसनेस से जुड़े हैं समस्त विकार। तो जैसे ही हम बॉडी कॉन्शियसनेस से बिल्कुल डिटैच होने लगते हैं तो भौतिकता से भी हम थोड़े डिटैच हो जाते हैं। और संसार में हमारी जो तृष्णायें, इच्छायें, रस, दौड़-भाग कर रहे हैं, हमें बांध रहे हैं। वो छूट जाते हैं। दूसरी ओर ये मनोविकार भी ढीले पडऩे लग जाते हैं। हज़ारों-लाखों के अनुभव हैं- क्रोधी थे। बॉडीलेस का अभ्यास करने से क्रोध शांत हो गया। अब उनके जीवन में शांति है, परिवार में शांति है। और दूसरी बात परमात्मा से बुद्धियोग जोडऩा। बिना इसके योग इनकम्पलीट है। जब तक हमने उससे बुद्धियोग नहीं जोड़ा, उसके स्वरूप पर मन-बुद्धि को स्थिर नहीं किया तब तक ये राजयोग कम्पलीट नहीं होता। तो अशरीरी होकर, आत्मिक स्वरूप में आकर परमात्मा से नाता जोडऩा उसके स्वरूप पर मन-बुद्धि को स्थिर करना और उससे शक्तियां ग्रहण करना, उससे प्युअर वायब्रेशन ग्रहण करना ये राजयोग है। परमात्म मिलन का मार्ग है। इस योग के अभ्यास से तो साधक को ये महसूस होता है कि हम भगवान से मिलते हैं। जब योग किया, मिलन की अनुभूति हुई। मेरे जीवन में भी यही हुआ। 1964 में मैंने प्रथम बार योग किया था तो लगा भगवान से मिलन हो गया, और उसने मुझे आकर्षित कर लिया। तो मैं सबको यही राय दूंगा कि मंत्र जाप तो कर लिया, अच्छा किया। अब परमात्मा से मिलन का सुख अनुभव करें।
प्रश्न : आज हमारी कंट्री के अन्दर बहुत-सी बुराइयां आ गई हैं। इन सबको कैसे दूर किया जा सकता है, कृपया इस पर कुछ बतायें?
उत्तर : युवा हमारे संसार के लिए एक गौरव हैं। जो हमारे देश को एक सुन्दर स्थिति में देखना चाहते हैं। जिनको इस समय चलने वाली बुराइयों का बहुत अच्छी तरह से आभास है। चाहे वो राजनीति में हो, चाहे युवकों के बीच हो, चाहे रेप के केस हो, बहुत सारी गंदगी समाज में जो आ गई है अगर वो बढ़ती गई तो कहीं न कहीं जब किसी भी बात की अति होती है तो विनाश को निमंत्रण देती है। तो मैं आपको कहूंगा कि आप स्वयं को तैयार करें कि हम इन सभी बुराइयों को समाप्त करने का एक बहुत अच्छा योगदान करेंगे। और संकल्प कर लें कि हम ना किसी को पैसा देंगे और न किसी से लेंगे। लेकिन ये प्रश्न आता है कि इसके बिना काम नहीं चलता। चलो न लेंगे मान भी लिया जाये लेकिन न देंगे इसके लिए तो कोई और चारा होता ही नहीं। नहीं तो चार-छह मास ऑफिस में चक्कर लगाने पड़ेंगे। और भी बहुत बुराइयां हैं उसको रोकने के लिए युवक इच्छुक हैं कि हम अपने देश में एक स्वच्छता देखना चाहते हैं। पवित्रता देखना चाहते हैं तो उन्हें पवित्रता का मार्ग स्वयं अपनाना होगा। देखिए लौकिक में देखें जब कोई बीमारी बहुत भारी पड़ जाती है, आजकल कैंसर के लिए भी कीमो थैरेपी देते हैं किसी को तो वो सहन करना ही भारी हो जाता है। आयुर्वेद में तो कड़वी दवाई पिला देते हैं। तो ये भयंकर बीमारी देश में फैल गई है। इसके लिए बहुत अच्छी ये दवाई है- पवित्रता का मार्ग अपनाना। और आप एक अपना ऐसा ग्रुप बना लें सभी युवक पवित्रता का पालन करते हुए भारत को अच्छा बनाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हों। मैं आपको ये भी स्पष्ट कर दूं कि भ्रष्टाचार को तब तक समाप्त नहीं किया जा सकता जब तक मनुष्य को श्रेष्ठाचारी न बना दिया जाये और मनुष्य को श्रेष्ठाचारी बनाने का काम स्वयं परम आत्मा का है। अब आप कहेंगे कि वो कब करेगा? करेगा या नहीं करेगा, उसपर डिपेंडेंट रहें क्या? तो वो कर रहा है। वो हर मनुष्य को देवत्व की ओर ले चल रहा है। और उसके इस कार्य से कई लाख लोग जुड़ चुके हैं।
हमारे यहाँ जो राजयोग सिखाया जाता है वो स्वयं भगवान ने सिखाया है। योगेश्वर ने सिखाया है। हम उस योग के वायब्रेशन से दूसरे के मन को अच्छी प्रेरणायें दे सकते हैं। वातावरण को पवित्र कर सकते हैं। तो ये काम भी हमारे बहुत अच्छे योगी कर रहे हैं। और इसका सुन्दर परिणाम थोड़े ही समय में हमारे सामने आने वाला है। कुछ समस्यायें ऐसी हैं जो बहुत बड़े लेवल की हैं, वहाँ तक हमारी पहुंच नहीं है, उसके लिए हमें सोचने की ज़रूरत नहीं। तो आपको मैं सजेस्ट करूंगा कि स्पिरिचुअल पॉवर अपने अन्दर बढ़ायें। हमारा अपना जीवन ही दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन जाये। एक से दूसरा सीखेगा, दो से चार सीखेंगे और इस तरह से ये संख्या बढ़ती-बढ़ती चली जायेगी। तो स्पिरिचुअल लाइफ बनायें, अपने जीवन को एक बहुत सुन्दर दर्पण बनायें। जिसमें हर व्यक्ति अपने को देखे और अपने को परिवर्तन करने की प्रेरणा प्राप्त करे।