संकल्प को कोई साधारण बात मत समझिये। आप समझते हैं संकल्प उठा, उसको दबा दिया। संकल्प चला, उसको मुख में लाकर वर्णन किया। संकल्प चला, हमने कर्म में लाकर कोई नुकसान कर दिया, किसी को दु:ख दे दिया। तो ये संकल्प से जो हम कार्य करते रहते हैं, ये हमारे साधारण, लौकिक, विकारयुक्त संकल्प हैं। सारे दिनभर में जितने संकल्प हम करते हैं, उठते-बैठते संकल्प से ही तो हैं। हमारी सारी मूवमेंट संकल्प से ही तो होती है। अगर हम संकल्प पर, उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देंगे तो हम महानता की ओर कैसे आगे बढ़ेंगे! जहाँ हम हैं वहां से आगे बढऩा, ये संकल्प से ही होता है। आगे बढऩा या पीछे, ये सीढ़ी उतरने और चढऩे की जो है, ये संकल्प ही है। तो क्या आप उसको इतना महत्त्व देते हैं या उसको ऐसे ही खर्च कर देते हैं?
एक व्यक्ति किसी धनवान घराने से सम्बंधित था। उसको अपने माता-पिता से बहुत सम्पत्ति मिली थी। उस सम्पत्ति के नशे में वो सिगरेट पीता था। वो जो सिगरेट पीता था, उसके ऊपर दस रुपये का नोट लपेटकर पीता था। जो उसके पास बैठे होते थे, वे हैरान होते थे कि दुनिया में कितने गरीब हैं, भारत में गरीबी से लोग मर रहे हैं, खाने के लिए नहीं है उनके पास, और ये व्यक्ति दस रुपये का नोट सिगरेट पर लपेटकर पीता है! लेकिन वो व्यक्ति इसमें अपनी शान समझता था कि पैसे की क्या बात है, मेरे पास तो बहुत धन है। तो कहीं शायद हम लोग भी उसी अपने उल्टे नशे में, देह अभिमान के नशे में जो संकल्प रूपी धन है, अनमोल धन है, इस संकल्प रूपी धन से हम कहां पहुंच सकते हैं! आप सोचिये तो सही! कितनी महान हमारी स्थिति हो सकती है! लेकिन हम भी उस संकल्प रूपी धन को, जैसे वो सिगरेट के ऊपर दस का नोट लपेटकर पीता था, वैसा ही हमारा हाल है। संकल्पों को गंवाते हैं तो हम संकल्प के महत्त्व को नहीं जानते हैं। कोई भी नज़रिया संकल्प की ही रचना है। एक दिन में नज़रिया नहीं बनता। कई बार किसी चीज़ के लिए जो संकल्प हम बार-बार दोहराते हैं वो हमारा नज़रिया, दृष्टिकोण या वृत्ति कहलाता है। हमारे संकल्प बदलते रहते हैं। कभी शुद्ध, कभी अशुद्ध। कभी शरीर से सम्बंधित, कभी व्यक्ति के मूल स्वरूप क्रआत्माञ्ज से सम्बंधित। कभी योगयुक्त, तो कभी योगभ्रष्ट हमारे संकल्प रहते हैं।
कोई व्यक्ति अगर पाँच कदम आगे बढ़े और दस कदम वापस लौट आये, तो उसने प्रगति की या अवनति की? आप कहेंगे कि अवनति की, क्योंकि वो बढ़ा तो पाँच कदम और वापस लौट आया दस कदम। तो आगे क्या बढ़ा वो! ऐसे ही अगर हमने ट्राफिक कंट्रोल के टाइम, योग के टाइम कुछ अच्छे संकल्प किये, हमारी वृत्ति अच्छी रही और बाकी समय में अगर हमारी वृत्ति खराब रही माना हम वापस लौट आये तो जितना फासला हमने योग के दौरान तय किया था, उससे अगर हम ज्य़ादा समय योग-स्थिति के अलावा रहे तो हम नीचे आये, पीछे चले आये। अन्य कार्यों के लिए तो हम ज्य़ादा समय खर्च करते हैं लेकिन योग के लिए कम। योग के समय कुछ टाइम तो स्थिर रहने के लिए ही हमने लगा दिया। और जब स्थिर होकर ठीक होने लगे तो समय समाप्त हो गया। उसके बाद हम दिन भर में लोगों के अवगुण नोट करते रहे। उनसे हमारा श्रेष्ठ व्यवहार नहीं रहा। हम तो चाहते हैं कि हमारी वृत्ति सर्वोत्तम, सतोप्रधान जैसे देवी देवताओं की होती है वैसी ही हो। बिल्कुल निर्मल वृत्ति चित्त की हो। हर्षितचित्त की वृत्ति हो, संतुष्टता के चित्त की वृत्ति हो। संतुष्ट, निर्मल और हर्षित हो। ये तीनों गुण अगर हममें हो, तो वो वृत्ति कैसी होगी! वो सबसे प्रेम की वृत्ति होगी। और हम सबकी जो वृत्ति है वो तो अप एंड डाउन, अप एंड डाउन। जैसे किसी को थर्मामीटर लगाओ, नर्स देखती है बार-बार, या ब्ल्ड प्रेशर चेक करो, तो कभी अप कभी डाउन, कभी अप कभी डाउन, तो ऐसी ही व्यक्ति की स्थिति होगी। कभी अप, कभी डाउन। तो उसकी दिन भर में क्या प्रोग्रेस रही? क्या कहेंगे? नहीं ना। तो संकल्प हमारा धन है, खज़ाना है, शक्ति है, उसके महत्त्व को समझें और जितना महत्त्व देंगे, उतना ही हम आगे बढ़ेंगे, प्रोग्रेस होगी, सफल होंगे। और जीवन में संतुष्टता भी संकल्प को महत्त्व देने से ही रहेगी।