परमात्म ऊर्जा

0
83

एक बाप से ही योग है तो सहयोग भी एक के ही साथ है। योगी अर्थात् सहयोगी। तो सहयोग से योग को देख सकते हो, योग से सहयोग को देख सकते हो। अगर कोई भी व्यर्थ कर्म में सहयोगी बनते हो तो बाप के सदा सहयोगी हुए? जो पहला-पहला वायदा किया हुआ है उसको सदा स्मृति में रखते हुए हर कर्म करते हो कि भक्तों मुआफिक कहाँ-कहाँ बच्चे भी बाप से ठगी तो नहीं करते हो? भक्तों को कहते हो ना- भक्त ठगत हैं। तो आप लोग भी ठगत तो नहीं बनते हो? अगर तेरे को मेरा समझ काम में लगाते हो तो ठगत हुए ना। कहना एक और करना दूसरा – इसको क्या कहा जाता है? कहते तो यही हो ना कि तन-मन-धन सब तेरा। जब तेरा हो गया फिर आपका उस पर अपना अधिकार कहाँ से आया? जब अधिकार नहीं तो उसको अपनी मन मत से काम में कैसे लगा सकते हो? संकल्प को, समय को, श्वास को, ज्ञान-धन को, स्थूल तन को अगर कोई भी एक खज़ाने को मनमत से व्यर्थ भी गंवाते हो तो ठगत नहीं हुए? जन्म-जन्म के संस्कारों के वश हो जाते हैं। यह कहाँ तक रीति चलती रहेगी? जो बात स्वयं को भी प्रिय नहीं लगती तो सोचना चाहिए- जो मुझे ही प्रिय नहीं लगती वह बाप को प्रिय कैसे लग सकती है? सदा स्नेही के प्रति जो अति प्रिय चीज़ होती है वही दी जाती है। तो अपने आप से पूछो कि कहाँ तक प्रीत की रीति निभाने वाले बने हैं? अपने को सदा हाइएस्ट और होलीएस्ट समझकर चलते हो? जो हाइएस्ट समझकर चलते हैं उन्हों का एक-एक कर्म, एक-एक बोल इतना ही हाइएस्ट होता है जितना बाप हाइएस्ट अर्थात् ऊंच ते ऊंच है। बाप की महिमा गाते हैं ना- ऊंचा उनका नाम, ऊंचा उनका धाम, ऊंचा काम। तो जो हाइएस्ट है वह भी सदैव अपने ऊंच नाम, ऊंचे धाम और ऊंंचे काम में तत्पर हों। कोई भी निचाई का कार्य कर ही नहीं सकते हैं। जैसे महान आत्मा जो बनते हैं वह कभी भी किसी के आगे झुकते नहीं हैं। उनके आगे सभी झुकते हैं तब उसको महान आत्मा कहा जाता है। जो आजकल के ऐसे-ऐसे महान आत्माओं से भी महान, श्रेष्ठ आत्मायें, जो बाप की चुनी हुई आत्मायें हैं, विश्व के राज्य के अधिकारी हैं, बाप के वर्से के अधिकारी हैं, विश्व कल्याणकारी हैं- ऐसी आत्मायें कहाँ भी, कोई भी परिस्थिति में व माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण करने वाले रूपों में क्या अपने आप को झुका सकते हैं? आजकल के कहलाने वाले महात्माओं ने तो आप महान आत्माओं की कॉपी की है। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें कहाँ भी, किसी रीति झुक नहीं सकती। वे झुकाने वाले हैं, न कि झुकने वाले। कैसा भी माया का फोर्स हो लेकिन झुक नहीं सकते। ऐसे माया को सदा झुकाने वाले बने हो कि कहाँ कहाँ झुक करके भी देखते हो? जब अभी से ही सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे, ऐसे देखते हो? जब अभी से ही सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे, ऐसे श्रेष्ठ संस्कार अपने में भरेंगे तब तो ऐसे हाएस्ट पद को प्राप्त करेंगे जो सतयुग में प्रजा स्वमान से झुकेगी और द्वापर में भिखारी हो झुकेंगे। आप लोगों के यादगारों के आगे भक्त भी झुकते रहते हैं ना। अगर यहाँ अभी माया के आगे झुकने के संस्कार समाप्त न किये, थोड़े भी झुकने के संस्कार रह गये तो फिर झुकने वाले झुकते रहेंगे और झुकाने वालों के आगे सदैव झुकते रहेंगे। लक्ष्य क्या रखा है, झुकने का व झुकाने का? जो अपनी ही रची हुई परिस्थिति के आगे झुक जाते हैं – उनको हाइएस्ट कहेंगे? जब तक हाइएस्ट नहीं बने हो तब तक होलीएस्ट भी नहीं बन सकते हो। जैसे आपके भविष्य यादगारों का गायन है सम्पूर्ण निर्विकारी। तो इसको ही होलीएस्ट कहा जाता है। सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्टेज में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए व उनके वशीभूत न हो। अगर स्वप्न में भी किसी भी प्रकार विकार के वश किसी भी परसेन्टेज में होते हो तो सम्पूर्ण निर्विकारी कहेंगे? अगर स्वप्नदोष भी है व संकल्प में भी विकार के वशीभूत हैं तो कहेंगे विकारों से परे नहीं हुए हैं। ऐसे सम्पूर्ण पवित्र व निर्विकारी अपने को बना रहे हो व बन गये हो? जिस समय लास्ट बिगुल बजेगा उस समय बनेंगे? अगर कोई बहुत समय से ऐसी स्थिति में स्थित नहीं रहता है तो ऐसी आत्माओं का फिर गायर भी अल्पकाल का ही होता है। ऐसे नहीं समझना कि लास्ट में फास्ट जाकर इसी स्थिति को पा लेंगे। लेकिन नहीं। बहुत समय जो गायन है – उसको भी स्मृति में रखते हुए अपनी स्थिति को होलीएस्ट और हाइएस्ट बनाओ। कोई भी संकल्प व कर्म करते हो तो पहले चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम है वैसा ऊंचा काम है? अगर नाम ऊंचा और काम नीचा तो क्या होगा? अपने नाम को बदनाम करते हो? तो ऐसे कोई भी काम नही हो – यह लक्ष्य रखकर ऐसे लक्षण अपने में धारण करो। जैसे दूसरे लोगों को समझाते हो कि अगर ज्ञान के विरूद्ध कोई भी चीज़ स्वीकार करते हो तो ज्ञानी नहीं अज्ञानी कहलाये जायेंगे। अगर एक बार भी कोई नियम को पूरी रीति से पालन नहीं करते है तो कहते हो ज्ञान के विरूद्ध किया। तो अपने आप से भी ऐसे ही पूछो कि अगर कोई भी साधाराण् संकल्प् करते हैं तो क्या हाइएस्ट कहा जायेगा? तो संकल्प भी साधारण न हो। जब संकल्प श्रेष्ठ हो जायेंगे तो बोल और कर्म ऑटोमेटिकली श्रेष्ठ हो जायेंगे। ऐसे अपने को होलीएस्ट और हाइएस्ट, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाओ। विकार का नाम निशान न हो। जब नाम निशान ही नहीं तो फिर काम कैसे होगा? जैसे भविष्य में विकार का नाम निशान नहीं होता है ऐसे ही हाइएस्ट और होलीएस्ट अभी से बनाओ तब अनेक जन्म चलते रहेंगे।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें