जो लोग अकेले में ज्य़ादा समय बिताते हैं वे फिजि़कल, मेंटल और इमोशनल स्ट्रेस से काफी हद तक मुक्त रहते हैं। लगातार लोगों से घिरे रहते हैं तो एकाग्रता और निर्णय क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है, जल्दी गुस्सा आने लगता है। एकांत को मनुष्य का दोस्त बताया गया है, जो स्वतंत्र रहना भी सिखाता है।
बार-बार डिस्टर्ब होना, मूड ऑफ होना, कामनायें पूरी न होने पर आहत होना, इच्छाओं पर नियंत्रण न रख पाना, असहज महसूस होना, भावनाओं को ठेस पहुंचना, एकांत से पता चलता है कि हम क्यों आहत होते हैं, क्यों हर्ट होते हैं।
जब कहते हैं मेरी भावनायें, मेरे विचार तो ”मैं” और ”मेरा”, इसकी सूक्ष्मता को समझना ज़रूरी है। ”मै” अलग, ”मेरा” अलग, ”मैं” मालिक, तो ”मेरे” पर मेरा नियंत्रण। इस तरह से एनालाइज़ करने पर हम अपनी शक्ति को बढ़ाते हैं और ”मैं” जो कि मालिक हूँ, इस भाव की प्रखरता आती है और ”मेरे” पर नियंत्रण करने की ताकत आती है।
ये सही है कि किसी की भी शत् प्रतिशत् मनोकामनायें पूर्ण नहीं होती, इस सच्चाई को हमें स्वीकारना चाहिए। और जब हम एकांत में, शांत मन से इस तरह सोचते हैं, अवलोकन करते हैं, उसको देखते हैं तो हम सच्चाई से रूबरू होते हैं। और जहाँ सच्चाई को आधार बनाकर तटस्थ भाव से देखते हैं तो इमोशनल से होने वाले हर्ट से बच सकते हैं। अनावश्यक इच्छायें, कामनायें जो हमारे जीवन में बार-बार अस्थिरता पैदा करती हैं उनसे मुक्त रह सकते हैं।
एकांत के साथ-साथ एकाग्रता को भी बढ़ाना बहुत ज़रूरी है। एकांत में जब हम किसी पर फोकस करते हैं, सही क्या, गलत क्या तो फिर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि मुझे ऐसा करना है, इसी में मेरा और सर्व का कल्याण है, इसपर ही मुझे स्थिर रहना है। इसमें ही सक्सेस है।
एकांत में बिताया समय आने वाली परिस्थितियों में हमें स्थिर बनाए रखने में मदद करता है। स्वयं को विचलित होने से बचाये रखने की ताकत देता है। लक्ष्य के भटकाव से मुक्त रखता है। एकांत हमें मूल्यवान बनाता है। स्वयं पर भरोसे को कायम रखता है।
एकांत वह टूल है, शस्त्र है, यंत्र है जो हमारी निर्णय और परख शक्ति को धार देता है। मन में उत्पन्न होने वाले व्यर्थ थॉट्स से बचाता है। एकांत एक जनरेटर की तरह है, जो स्व-निहित ऊर्जा को उत्पन्न करता है। जैसे सूर्य की बिखरी प्रकाश की किरणें उचित अंतर पर लेंस रखने से कागज़ के टुकड़े व घास-फूस को जला देती हैं, उसी तरह हमारी स्व-निहित शक्ति फोकस्ड होने पर हमें व्यर्थ से मुक्त रख समर्थवान बनाती है। मार्ग में आने वाली रुकावटों, कठिनाइयों, चुनौतियों में हमें सामना करने की ताकत देती हैं। भावनाओं के वश बार-बार गुस्से का शिकार होने से बचाये रखती है। तनाव व चिड़चिड़ापन, फीलिंग की फ्लू जैसी बीमारियों से रोकथाम करती है। और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हम लक्ष्य की ओर अग्रसर होते जाते हैं।
राजा-महाराजा भी कुछ पल अकेले में वक्त बिताने और ध्यान लगाने के लिए जाया करते थे। एकांत को मनुष्य का दोस्त बताया गया है जो स्वतंत्र रहना भी सिखाता है। स्वतंत्र का मतलब है, स्वयं का तंत्र। यानी मेरा अपना तंत्र, मेरी अपनी व्यवस्था। इसको हम सही अर्थ में समझें तो हमारे अंदर चलने वाली भावनायें, इच्छायें, संकल्प जिससे हम चलते हैं वो तंत्र। अपने तंत्र पर काबू होना माना कि स्वच्छंदता से मुक्त रहना। अर्थात् अमंगलकारी भावनाओं, इच्छाओं, आवेश के प्रभाव से स्वयं को बचाना। आये अवसर से स्वयं को संवारना और उससे आगे बढऩा, आत्म विश्वास को प्रगाढ़ करना। एकांत हमारी क्षमताओं को शक्ति प्रदान करता है। अपने अंदर छिपी संभावनाओं को संभव करने का बल देता है।
जैसे आजकल की जीवन-व्यवस्था में संडे का अवकाश रहता है। इस प्रणाली के पीछे सोच यही है कि बीते छ: दिन में हम कैसे रहे, कैसे रिएक्ट किया, हमारी मानसिक अवस्था कैसी रही, हमने रिस्पॉन्ड कैसे किया व तयशुदा लक्ष्य की ओर और आगे बढ़े और हासिल किया या कुछ काम अधूरे रह गये, रह भी गये तो क्यों रहे, इस पर एनालाइज़ करना और रियलाइज़ कर आगे बढऩा। इसी तरह हमें भी बीच-बीच में एकांत में जाना चाहिए जहाँ हम अपने को देख सकें, अपने को निहार सकें, निखार सकें और उस निष्कर्ष तक पहुंचें कि मुझे इस तरह से आगे अपडेट करना है।