बाबा ने आकर भक्ति का फल सत्य ज्ञान हम बच्चों को दिया है, हमें स्पष्ट है कि मनमत हो या परमत हो, मनुष्य मत हो, शास्त्र मत हो या गुरु मत हो वो सम्पूर्ण सत्य नहीं है। क्योंकि कलियुग के अंत के समय हरेक आत्मा सतयुग से लेकर कलियुग तक जो भी इस ड्रामा में पार्ट बजाने आये हैं चाहे वो आत्मा है, देवात्मा है, धर्मात्मा है, महात्मा है वो सर्वमनुष्यात्मायें ही हैं।
संगमयुग में स्वयं शिवबाबा(परमात्मा) सृष्टि पर आते हैं और आकर जो मत देते हैं उसे ही श्रीमत कहा जाता है। ब्रह्मा तन में प्रवेश कर ब्रह्मा मुख से बाबा(परमात्मा)श्रीमत देते हैं और वो श्रीमत मुरली के रूप में हमारे सामने है। बाबा ने जो श्रेष्ठ मत, सत्य मत हम बच्चों को दी है उसी का यादगार भक्ति में श्रीमद्भगवत गीता शास्त्र बनता है। इस शास्त्र रचना में समय प्रति समय मनुष्य मत मिश्रण होती गई इसलिए आज संसार के सामने भगवान की श्रेष्ठ मत, भगवान का सत्य गीता ज्ञान दुनिया वालों के सामने नहीं है लेकिन सत्य या ओरिजनल गीता शास्त्र भी नहीं है। हम भाई-बहनें भाग्यशाली हैं कि साक्षात भगवान जो श्रेष्ठ मत देते हैं वो बिल्कुल स्पष्ट रूप में हमें प्राप्त हो रही है। ये तो आप जानते हैं कि हरेक इंसान अपना जीवन कोई न कोई मत के आधार पर चलाता है। वो मत उनकी अपने मन की भी हो सकती है, अन्य से मिली हुई भी हो सकती है जिसको बाबा कहते हैं कि इंसान मनमत पर जीता है या परमत दूसरों के कहने अनुसार जीता है। जो लोग भक्ति करते हैं भारतवासी ही नहीं बल्कि हर कोई धर्म भक्ति करते हैं तो वो भी हरेक शास्त्र मत पर या अपने-अपने गुरु की मत पर चलते हैं। 63 जन्मों का अनुभव क्योंकि द्वापर युग से मनमत भी शुरु भी होती है, परमत, मनुष्य मत भी शुरु भी होती है और गुरुमत, शास्त्रमत भी शुरु होती है।
अनेक मत होने के कारण जीवन का कोई स्वरूप नहीं रहा। मनुष्य मूंझते हैं आखिर किसकी मत पर चलेे, किसका कहना मानें इसलिए हम जो मानते हैं वो ही ठीक है करके, उसी मनमत या गुरु मत, या शास्त्र मत पर चलते रहते हैं। लेकिन अब जबकि बाबा ने आकर भक्ति का फल सत्य ज्ञान हम बच्चों को दिया है, हमें स्पष्ट है कि मनमत हो या परमत हो, मनुष्य मत हो, शास्त्र मत हो या गुरु मत हो वो सम्पूर्ण सत्य नहीं है। क्योंकि कलियुग के अंत के समय हरेक आत्मा सतयुग से लेकर कलियुग तक जो भी इस ड्रामा में पार्ट बजाने आये हैं चाहे वो आत्मा है, देवात्मा है, धर्मात्मा है, महात्मा है वो सर्वमनुष्यात्मायें ही हैं। हर कोई कलियुग के अंत समय पतित तमोप्रधान स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं इसलिए उस पतित आत्म स्थिति से जो भी मत होगी वो सत्य नहीं हो सकती, श्रेष्ठ नहीं हो सकती। तो ये हम सबकी बुद्धि में स्पष्ट रहे कि जन्म-मरण के चक्र में आने वाली, कलियुग अंत में पहुंची हुई किसी भी आत्मा की मत सत्य नहीं हो सकती, श्रेष्ठ नहीं हो सकती। इसलिए वो कल्याणकारी नहीं हो सकती।
इसलिए बाबा(परमात्मा) हम बच्चों को समझाते हैं कि मनुष्य, मनुष्य की सद्गति नहीं कर सकता। क्योंकि सद्मत से सद्गति होती है। और सद्मति, सत्यमति और सत्यबुद्धि किसी की भी आज नहीं है। नम्बरवार हरेक आत्मा की मत तमोप्रधान बन गई है। क्योंकि पवित्रता भी हमारी सम्पूर्ण नहीं है क्योंकि हम ब्राह्मण भाई-बहन भी पुरुषार्थी स्थिति में हैं। इसलिए बाबा जो ब्रह्मा मुख से मत देते, विचार देते वो ही सत्य है, कल्याणकारी है। इंसान अपनी मत किस आधार पर देता है,उसमें काफी बातें असर करती हैं। एक है उनकी जो मान्यतायें हैं, विश्वास है, वो मान्यतायें उनकी अपनी हैं, दूसरों के अनुभवों से मिली हुई हैं, समाज से, शिक्षा से, परिवार से मात-पिता से, धर्म से, संस्कृति से इन सबके द्वारा हमें विभिन्न प्रकार की मान्यतायें मिलती हैं। और इंसान जो मान्यता स्वीकार करता है उसी के आधार पर उसकी मत बनती है, ओपिनियन(राय) बनती है।
अब आत्मा अपने अन्दर संस्कारों के साथ जो मान्यता लेकर आती है चाहे माँ-बाप से, परिवार से, शिक्षा से, समाज से, संग से, पढ़ाई से, धर्म से, कल्चर से, जो भी मान्यतायें मिलती हैं वो पूर्ण सत्य नहीं हैं। और विज्ञान की भी जो मतें हैं वो भी फाइनल ट्रूथ नहीं हैं क्योंकि विज्ञान भी मानव मन की ही रचना है। और वो भी हरेक अपनी-अपनी रिसर्च के अनुसार मत देते हैं। इसलिए वो बदलती रहती है। जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं वो लोग धर्म से मान्यतायें ज्य़ादा लेते हैं। और जो भौतिकवादी लोग हैं वो विज्ञान से ज्य़ादा मत लेते हैं लेकिन हमें स्पष्ट रखना चाहिए बुद्धि में कि धर्म भी पूर्ण सत्य नहीं हो सकता और विज्ञान भी पूर्ण सत्य नहीं हो सकता। और यही कारण है कि धर्म भी अनेक हैं, और शास्त्र भी अनेक हैं और वैज्ञानिकों के द्वारा भी समय प्रति समय रिसर्च के नये-नये रिज़ल्ट समाज के सामने रखे जाते हैं। इसलिए दोनों में मूंझ है। बाबा की मुरली में इतना सुन्दर महावाक्य आता है इसलिए सूत मूंझा हुआ है माना उलझा हुआ है।