जो जितना ऊंच वो उतना नम्र

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महाराजा विक्रमादित्य प्राय: अपने देश की आंतरिक दशा जानने के लिए वेश बदलकर पैदल घूमने जाया करते थे। एक दिन घूमते-घूमते एक नगर में पहुंचे। वहाँ का रास्ता उन्हें मालूम नहीं था। राजा रास्ता पूछने के लिए किसी व्यक्ति की तलाश में आगे बढ़े।
आगे उन्हें एक हवलदार सरकारी वर्दी पहने हुए दिखा। राजा ने उसके पास जाकर पूछा- ‘महाशय अमुक स्थान जाने का रास्ता क्या है, कृपया बताइए?’ हवलदार ने अकड़ कर कहा – ‘मूर्ख तू देखता नहीं, मैं हाकिम हूँ, मेरा काम रास्ता बताना नहीं है, चल हट किसी दूसरे से पूछ।’
राजा ने नम्रता से पूछा, महोदय! यदि सरकारी आदमी भी किसी यात्री को रास्ता बता दे, तो कोई हर्ज तो नहीं है? खैर मैं किसी दूसरे से पूछ लूंगा। पर इतना तो बता दीजिए कि आप किस पद पर काम करते हैं? हवलदार ने भोंहे चढ़ाते हुए कहा- अंधा है! मेरी वर्दी को देखकर पहचानता नहीं कि मैं कौन हूँ?
राजा ने कहा- शायद आप पुलिस के सिपाही हैं। उसने कहा नहीं, उससे ऊंचा। तब क्या नायक हैं? नहीं, उससे भी ऊंचा। अच्छा तो आप हवलदार हैं? हवलदार ने कहा, अब तू जान गया कि मैं कौन हूँ। पर यह तो बता इतनी पूछताछ करने का तेरा क्या मतलब और तू कौन है?
राजा ने कहा – मैं भी सरकारी आदमी हूँ। सिपाही की ऐंठ कुछ कम हुई।
उसने पूछा, क्या तुम नायक हो? राजा ने कहा नहीं, उससे ऊंचा। तब क्या आप हवलदार हैं, नहीं, उससे भी ऊंचा। तो क्या दरोगा हैं? उससे भी ऊंचा। हवलदार ने कहा, तो क्या आप कप्तान हैं?
राजा ने कहा, नहीं उससे भी ऊंचा। सूबेदार जी हैं? नहीं, उससे भी ऊंचा। अब तो हवलदार घबराने लगा, उसने पूछा – तब आप मंत्री जी हैं। राजा ने कहा, भाई! एक सीढ़ी और बाकी रह गई है। सिपाही ने गौर से देखा, तो सादी पोशाक में महाराजा विक्रमादित्य सामने खड़े हैं। हवलदार के होश उड़ गये, वह गिड़गिड़ाता हुआ राजा के पांव पर गिर पड़ा और बड़ी दीनता से अपने अपराध की माफी मांगने लगा। राजा ने कहा- ‘माफी मांगने की कोई बात नहीं है मैं जानता हूँ कि जो जितने नीचे हैं वह उतने ही अकड़ते हैं। जब तुम बड़े बनोगे तो मेरी तरह तुम भी नम्रता का बर्ताव सीखोगेे। जो जितना ही ऊंचा है, वह उतना ही सहनशील एवं नम्र होता है और जो जितना नीच वह उतना ही ऐंठा रहता है।’

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