ब्रह्मचर्य में इतना बल है, शुद्ध आहार और संयम तथा नियम में। जब हमारा जीवन ऐसा हो, कोई चिंता नहीं, कोई फिक्र नहीं, कोई डर नहीं। तो हमारी एनर्जी कहाँ जायेगी। वह इतनी जबरदस्त एनर्जी होती है, हिम्मत ऐसी होती है कि हाथी भी आये तो उसको उठाके फेंक दूंगा। उस समय उत्साह-उमंग होता है कि मैं यह कर सकता हूँ। कमाल है बाबा की।
आप जानते हैं कि जब कोई व्यक्ति किसी व्याधि के अधीन होता है तो उसको कई प्रकार से टाइम मिल जाता है। कई टचिंग्स भी होती हैं। मैंने कई सन्त-महात्माओं की जीवन कहानी पढ़ी थी, क्राइस्ट की भी पढ़ी, औरों की भी पढ़ी। सबके साथ लगभग ऐसा ही हुआ। अभी इस ज़माने में कलियुग के अन्त में भी जो अच्छे-अच्छे लोग मैंने देखे, उनके जीवन में भी कष्ट आये। तो यह सब कर्मों की गति से होता है। इसके अतिरिक्त कोई और राज़ भी हैं, जो अनुभव साधारणतया हम नहीं कर पाते हैं, मैंने खुद इस दफा वह कई अनुभव किये हैं जो बहुत उत्तम प्रकार के, श्रेष्ठ प्रकार के अनुभव थे। जिनकी मुझे इच्छा थी। मैं पहले करता था लेकिन इतना दीर्घकाल के लिये दो-अढ़ाई घंटे तक वह अनुभव जारी रहे, वैसा नहीं किया था। काफी टाइम किया था लेकिन इतना नहीं, वह अनुभव मुझे हुआ। उस अनुभव से हमारी जो आध्यात्मिकता है, नैतिकता है, हमारी जो अनुभूति का स्तर है, जो नये-नये अनुभव हमने पहले नहीं किये थे, वह अनुभव होते हैं।
दूसरा मैंने ये देखा, हम सब सुबह से शाम तक बिजी रहते हैं। इतना दुनिया वाले भी बिजी नहीं हैं, हम लोग उनसे ज्य़ादा बिजी रहते हैं। सेवा में रहते हैं। अगर कोई सेवा में बिजी नहीं रहते तो उनके मन में कई बातें चलती हैं। मनुष्यों के बारे में, व्यक्तियों के बारे में और परिस्थितियों के बारे में, वृत्तांतों के बारे में सोचते रहते हैं, मन कोई खाली तो होता नहीं। कोई ऐसा समय जीवन में हो जब भगवान के अतिरिक्त कोई और याद न हो। जिसको बाबा कहते हैं- ‘एक मैं दूसरा न कोई’। वह दीर्घकाल के लिए अनुभव हो कि हम और वह हैं और कोई नहीं। बीमारी के सदके अगर ऐसे अनुभव बाबा हमें कराता है तो आप क्या चाहेंगे, क्या सोचेंगे? कि यह बीमारी तो हमारे लिए एक गुप्त रूप से ब्लैसिंग लेके आयी, एक प्रकार से हमारे लिए वरदान हो गया। तो यह सिर्फ कर्मों की गति की बात नहीं है।
दो रात को ऐसा हुआ कि बिल्कुल नींद नहीं आयी। मैं वैसे भी जीवन में बहुत कम सोया हूँ। ब्रह्मचर्य में इतना बल है, शुद्ध आहार और संयम तथा नियम में। जब हमारा जीवन ऐसा हो, कोई चिंता नहीं, कोई फिक्र नहीं, कोई डर नहीं। तो हमारी एनर्जी कहाँ जायेगी। वह इतनी जबरदस्त एनर्जी होती है, हिम्मत ऐसी होती है कि हाथी भी आये तो उसको उठाके फेंक दूंगा। उस समय उत्साह-उमंग होता है कि मैं यह कर सकता हूँ। इतना अन्दर में स्टेमिना, एनर्जी होती है। तो जागता रहा हूँ लेकिन यह जागना और तरह का है। कुछ दवाइयां ऐसी दी होंगी या पता नहीं काफी एलर्ट हो गया, कोई नींद नहीं आयी। और जब नींद नहीं आयी, एक दिन तो रात को मैं कोशिश करता रहा सो जाऊं। एक दिन तो मैं नींद का पुरूषार्थ करता रहा। दूसरे दिन मैंने कोई कोशिश नहीं की, बाबा की याद में रहने की कोशिश की। मैं इस समय का सदुपयोग करूं और मैंने देखा सुबह को भी मुझे कोई ऐसी थकावट, कोई ऐसी मुश्किलात नहीं थी, ऐसा लगता था – मैं एलर्ट हूँ, जागती ज्योत हूँ।
डॉ. लोग पूछते थे कि रात को नींद आयी? तो उनको मैं बताता था कि नींद तो आयी ही नहीं, मैंने समझा यह जो बाबा कहते हैं 8 घंटे योग में रहो, हम कहते हैं टाइम नहीं है। बाबा कहते हैं बच्चे रात को कुछ टाइम निकालो, व्यक्तिगत पुरूषार्थ करो। मैं तुम्हारे से अपॉइंटमेंट करके अलग से तुम्हारे से बातचीत करूंगा, वरदान दूंगा हम उसके तरफ ध्यान देते नहीं। तो मैंने सोचा मेरा ध्यान गया कि खामखां हम लोग सोचते हैं कि इतने घंटे तो ज़रूर सोना है, नहीं सोयेंगे तो आलस्य आयेगा। तो अच्छा अनुभव रहा।
कहने का भाव यह है कि हम लोगों के जो अनुभव हैं, उसमें ऐसा कोई नहीं कह सकता कि बाबा ने मुझे छोड़ दिया, कभी नहीं, कभी नहीं, एक मिसाल भी अभी तक मैंने सुनी नहीं। जिन्होंने शरीर छोड़ा है, जो हमारी पुरानी बहनें हैं, दादियां हैं। बाबा ने कितनी मदद की है। खुशी से मुस्कुराते हुए शरीर छोड़ा है। तो यह जो आखिरी टेस्ट है, निश्चय का और देही अभिमानी स्थिति का, यह आता है। बाबा ने कहा है कि परीक्षा के टेस्ट पेपर बनते हैं, उसके प्रश्न आउट नहीं होते। आउट हो जायें तो कहते हैं, पेपर आउट हो गया, यह इम्तहान दुबारा होना चाहिए लेकिन बाबा कहते हैं कि मैं इसके दो प्रश्न, एक प्रश्न तो पहले से ही आउट कर देता हूँ जो शुरू से अंत तक यह प्रश्न आयेगा कि आप आत्मा के स्वरूप में स्थित हो कि नहीं? शुरू से लेकर अन्त तक यह टेस्ट तो आपका चलता रहेगा। यह हमारे ज्ञान की परिपक्वता है। हमारी स्थिति का अचल होना है।