शरीर खुद ही खुद का हीलर है

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शरीर पांच तत्वों से निर्मित है। तो इसे हील करने के लिए दवाईयों की नहीं मूल्यों की ज़रूरत है। ऋषि-मुनि, तपस्वियों के पास ऐसा कोई वैद्य नहीं होता था, ऐसी कोई मेडिसिन नहीं होती थी जिससे वो अपने आपको ठीक कर सकें। लेकिन उनके अन्दर वो गुण और शक्तियां थी जिनके द्वारा शरीर अपने आप हील हो जाता था।

हम सभी को जानकर ये बिल्कुल हैरानी नहीं होगी कि हमारे शरीर का जो सिस्टम बना है, शरीर का जो तंत्र बना है उसके तंत्र को बहुत ही सिस्टेमेटिक बनाया गया है। जिसके अन्दर वो सबकुछ मौजूद है जो शरीर को हील कर देता है। आपने जानवरों का मिसाल तो देखा ही होगा अगर उनको कहीं चोट लग जाये या कोई ऐसी चीज़ें हो जायें बाहर तो अपने आप चलकर, अपने आपको चाट कर ठीक कर लेते हैं। ऐसे ही हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है, इसमें पृथ्वी है, जल है, अग्नि है, वायु है, आकाश है, ये पांचों तत्व जुड़े हुए हैं। और कहा जाता है कि हर एक तत्व से शरीर का हर एक अंग बना हुआ है।

  1. पृथ्वी तत्व : सबसे पहले हम अलग-अलग इसको देखेंगे कि पृथ्वी तत्व से हमारा हड्डी, मांसपेशी, नाखुन, बाल ये सारी चीज़ें बनी हुई हैं।
  2. जल तत्व : जल तत्व से हमारा जितना भी युरिनरी सिस्टम है, जिसको हम कहते हैं उत्सर्जन तंत्र। युरिनरी सिस्टम के जैसे किडनी है, किडनी फंक्शन है पूरा, जो पानी से कनेक्टेड है, बना है।
  3. अग्नि तत्व : अग्नि तत्व से हमारा पूरा डायजेस्टिव सिस्टम बना है।
  4. वायु तत्व : वायु तत्व से हमारा पूरा श्वसन तंत्र बना है।
  5. आकाश तत्व : आकाश तत्व से हमारा इएनटी सिस्टम बना है। इअर, नॉज़ और थ्रॉट का सिस्टम बना है। तो ये पांच तत्वों से हमारे शरीर के सारे तंत्र जो हैं वो बने हुए हैं। अब आप ये चीज़ देखें कि ये जो पांचों तत्व हैं, ये अपने आप में हील कर देते हैं शरीर को। क्योंकि शरीर पांच तत्वों से निर्मित है। तो इसे हील करने के लिए दवाईयों की नहीं मूल्यों की ज़रूरत है। ऋषि-मुनि, तपस्वियों के पास ऐसा कोई वैद्य नहीं

होता था, ऐसी कोई मेडिसिन नहीं होती थी जिससे वो अपने आपको ठीक कर सकें। लेकिन उनके अन्दर वो गुण और शक्तियां थी जिनके द्वारा शरीर अपने आप हील हो जाता था।

आत्मा के मूल्य शरीर की हीलिंग पॉवर
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारा शरीर ही मूल्यों को मानता है। जैसे एक उदाहरण है, कहा जाता है कि शरीर में जो-जो रोग होते हैं उन रोगों का कारण हमारे विचार होते हैं। और उसको डॉक्टर्स आज बोल ही रहे हैं साइकोसोमेटिक डिजीज बहुत ज्य़ादा होती हैं। तो जो विचार हैं वो विचार हमारे एक-एक तंत्र को प्रभावित करते हैं।

हमारे पृथ्वी तत्व से जुड़े हुए मूल्य हमारी पृथ्वी तत्व से जुड़ी हुई मूल्य चीज़ है, जिसको हम मूलाधार चक्र भी कहते हैं। जो मूलाधार चक्र को शक्ति की ज़रूरत है, लेकिन वो शक्ति काम क्यों नहीं कर रही है क्योंकि मूलाधार चक्र के साथ हमने सबसे ज्य़ादा काम विकार को जोड़ दिया। और दुनिया में जितनी भी शास्त्रगत बातें लिखी जाती हैं उसमें लिखा जाता है कि मूलाधार चक्र हमारे पूरे देह का मूल है। चक्रों का मूल है। इसका मतलब है कि उस चक्र से वो चक्र अगर ज्य़ादा हील है तो हमारा पूरा शरीर स्वस्थ है। तो मूलाधार चक्र या पृथ्वी तत्व खराब ज्य़ादा हो गया क्योंकि हम सबसे ज्य़ादा काम विकार को अहमियत देने लगे। कामनाओं को अहमियत देने लगे। जिससे हमारे हड्डी, मांसपेशी, नाखुन, बाल सब कमज़ोर हो गये। तो जितने भी कामना से ज्य़ादा लिप्त चीज़ें होंगी उससे हमारा शरीर का ये वाला सिस्टम पूरी तरह से नष्ट होगा। लेकिन इसको ठीक करने के लिए हमको शक्ति की आवश्यकता है। इसीलिए हनुमान जी, और दुर्गा जी को बैचलर दिखाते हैं, लाल रंग से रंगा हुआ दिखाते हैं। क्योंकि लाल रंग शक्ति का प्रतीक है।

जल तत्व का मूल्य
इसी तरह जो दूसरा तंत्र है जिसको हम यूरिनरी सिस्टम कहते हैं या हमारा जो किडनी फंक्शन वाला जो एरिया है वो खराब हो गया अटैचमेंट के कारण, मोह के कारण। क्योंकि जब हम बहुत ज्य़ादा मोह ग्रस्त हुए, मेरा-मेरा किया तो उससे हमारे इस सिस्टम में सबसे ज्य़ादा समस्या आई। जल का काम क्या है? सबके लिए है ना जल, एक के लिए तो नहीं है! लेकिन जब वो सिमित हो गया तो उससे हमारा इस सिस्टम पर बहुत ज्य़ादा प्रभाव पडऩे लगा। इसलिए किडनी फंक्शन और ये वाली चीज़ें खराब हो गईं, अटैचमेंट या मोह के कारण। इसीलिए आपने देखा होगा कि जितने भी ऋषि-मुनि या तपस्वी हैं उनको दिखाया जाता है कि उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहना हुआ है। गेरुआ वस्त्र पहनकर चल रहे हैं तो मोह को जीता हुआ है। मोहजीत हैं। यहाँ से निकलकर बाहर चले गए। इसीलिए जब तक हम मोह को जीतेंगे नहीं, अटैचमेंट को नहीं जीतेंगे, जब मोह होता है हम क्रिटिसाइज़ भी करते हैं, सबकी निंदा भी करते हैं तो उससे हमारा किडनी फंक्शन डैमेज होना स्टार्ट होता है। तो इससे एक बात और सिद्ध होती है कि किडनी खराब होने का कारण अटैचमेंट ज्य़ादा है। ये किसी भी चीज़ से हो सकता है। इसको ठीक करने के लिए हमको पवित्रता की ज़रूरत है, पवित्रता की शक्ति की ज़रूरत है।

अग्नि तत्व का मूल्य
तीसरा अग्नि तत्व ऐसे ही हमारा जो डायजेस्टिव सिस्टम है वो खराब हो गया हमारे अन्दर क्रोध के कारण। जितना क्रोध किया उतना हमारा डायजेस्टिव सिस्टम हील होना बंद हो गया। तो इससे हमारे अन्दर इन्सुलिन बनना बंद हो गया। जैसे डायबिटिक पेशेन्ट हो गये। जितने भी डायबिटिक पेशेन्ट हैं उन सबका एक ही कारण है इरिटेशन, नाराज़गी, गुस्सा, उससे हमारा डायजेस्टिव सिस्टम खराब हो गया। पर डायजेस्टिव सिस्टम को ठीक करने के लिए खुशी चाहिए, सुख चाहिए। इसीलिए सुख को पीले कलर के साथ दिखाया जाता है। पीला फल खाते हैं लोग पेट को ठीक करने के लिए। तो डायजेस्टिव सिस्टम को ठीक करने के लिए हमको सबसे ज्य़ादा खुशी की ज़रूरत है।

वायु तत्व को हील करने के मूल्य
हमारा जो वायु तत्व है, जिससे बना है हमारा श्वसन तंत्र। ये खराब हो गया ग्रीड के कारण, ज्य़ादा लोभ वृत्ति में हम आये, देखो लोभ के कारण पेड़ की कटाई सबकुछ हो रही है। माना हमको कुछ न कुछ मिलना चाहिए बाकी प्रकृति को कुछ भी होता रहे। उससे ब्लॉकेज शुरू हुई हार्ट के अन्दर की। तो वो ठीक करने के लिए हमको सबसे ज्य़ादा ज़रूरत है प्यार की, लव की। तो लव अगर आये तो हमारा हार्ट का सिस्टम कम्पलीट ठीक हो जायेगा।

किन मूल्यों से आकाश तत्व हील होगा
अब है हमारा इएनटी सिस्टम। जो स्पेस के साथ जुड़ा होता है। स्पेस का मतलब होता है इअर, नॉज़ और थ्रॉट के अन्दर प्रॉब्लम क्यों आई, क्योंकि हम किसी को स्पेस नहीं देते, किसी को जगह नहीं देते, न बोलने का, न खाने का, न पीने का, न रहने का इससे फुल टाइम सर्दी ज़ुकाम उनको लगा रहेगा और ये सारी चीज़ें खराब हो गई ईगो के कारण। अहम के कारण। इसलिए आप देखो खुले आसमान में शांति महसूस होती है ना तो हमको इसके लिए शांति की ज़रूरत है। जितनी गहरी शांति उतना हमारा ये इंटरसिस्टम हील हो जायेगा। तो इसका मतलब वैल्यूज़ की ज़रूरत है।
इसके बाद दो और हैं- मन और बुद्धि। मन और बुद्धि का मतलब अगर हमारा मन डर गया तो उसको ठीक करने के लिए ज्ञान चाहिए, शक्ति चाहिए। ज्ञान की शक्ति, नॉलेज की पॉवर। अब बुद्धि के लिए हमको क्रियेटिविटी चाहिए। रचनात्मकता चाहिए। बुद्धि आलसी हो गई और मन डर गया तो ये दो चीज़ें भी इसके साथ काम करती हैं, तो ये सातों गुण अगर हम आत्मा में विकसित कर लें, अपने अन्दर विकसित कर लें तो ये सारे रोग और पूरा शरीर बिल्कुल स्वस्थ हो जायेगा। सात रंगों को एक अनुपात में जोड़ दो तो वह सफेद रंग में बदल जाएगा। ये सफेद रंग पूरी बॉडी को एक एंजेलिक स्टेज में ले जाता है। तो जब तक ये सातों गुण हमारे अन्दर नहीं आयेेंगे तब तक बॉडी की सातों चीज़ें मन, बुद्धि और पांचों तत्व ठीक नहीं होंगे। इसलिए थोड़ा-सा जागृत होकर इन गुणों को विकसित करें न कि दवाईयों पर फोकस करें।

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