कन्या की समझदारी

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एक बार की बात है, एक राजा शिकार करने के लिए वन में गए, एक हिरण को देख कर उन्होंने अपने घोड़े को उसके पीछे दौड़ाया। हिरण का पीछा करते हुए उनके बाकी के साथी उनसे पीछे ही रह गए।
राजा दूर एक ऐसे जंगल में पहुंच गया, जहाँ मीलों तक पानी नहीं था, राजा को प्यास ने बहुत ही ज्य़ादा व्याकुल कर दिया था, जब राजा और कुछ आगे बढ़े तो उन्हें एक किसान की झोपड़ी दिखाई दी, राजा दौडक़र झोपड़ी के पास गए। जहाँ पर उस झोपड़ी के पास आठ-नौ साल की कन्या खेल रही थी। राजा ने उस कन्या से कहा बेटी शीघ्र ही एक गिलास जल लाओ, मुझको बहुत ज़ोर से प्यास लगी है।
उस कन्या ने राजा को आम मुसाफिर समझ कर एक खाट लाकर डाल दी और बैठने के लिए कहा तथा जल का एक गिलास लाकर राजा के हाथ में थमा दिया। राजा ने देखा कि पानी में तिनके पड़े हुए हैं, जिनको देख कर राजा को बहुत क्रोध आया और उसी आवेश में आकर उस कन्या से कहने लगे कि तुम्हारे पिता कहाँ हैं? कन्या ने उत्तर दिया, मिट्टी को मिट्टी में मिलाने गए हैं।
राजा को लडक़ी पर और ज्य़ादा क्रोध आया, परंतु प्यास लगी थी, जल पीना था इसीलिए राजा क्रोध को दबा कर कहने लगे कि और साफ जल लाओ, वह कन्या जल लाने के लिए फिर से झोपड़ी के अन्दर गयी, इतने में ही उस लडक़ी का पिता भी वहाँ आ गया, उसने तुरंत राजा को पहचान लिया और उसने प्रणाम किया राजा को और कहने लगा कि हुजूर आप एक गरीब की झोपड़ी में कैसे पधारे? राजा कहने लगा कि मैं शिकार के लिए वन में आया था, अपने साथियों से बिछड़ कर दूर आ गया हूँ, मुझे बहुत ज़ोर से प्यास लगी थी, यहाँ तुम्हारी कन्या से मैंने जल मांगा, तब तुम्हारी कन्या जल में तिनके डाल कर ले आई, जब मैंने तुम्हारे बारे में पूछा तो उसने कहा कि ”मिट्टी को मिट्टी में मिलाने गए हैं”।
कन्या के पिता कहने लगे हुजूर कन्या ने ठीक ही उत्तर दिया है, एक सज्जन के बच्चे की मौत हो गई थी हम उसके शरीर को मिट्टी में दबाने गए थे, इतने में वो कन्या भी जल का गिलास लेकर आ गई, किसान ने पूछा कि बेटी तुमने राजा को अच्छा जल क्यों नहीं दिया? कन्या ने उत्तर दिया, पिता जी राजा धूप में भागते हुए आये थे। सारे शरीर से पसीना छूट रहा था, यदि आते ही जल पिला दिया जाता तो वो जल गर्म और ठंडे की वजह से राजा को नुकसान हो सकता था, मैं इनको मना तो नहीं कर सकी, परंतु जल में तिनके डाल लाई, ताकि राजा कुछ समय तक जल न पी सकें।
राजा कन्या की चतुरता को देख बहुत प्रसन्न हुए और अपने गले से बहुमूल्य हीरों का हार उस कन्या के गले में डाल दिया, उनको हमेशा-हमेशा के लिए दरिद्रता के दु:खों से छुड़ा दिया।
जब यहाँ का राजा भी प्रसन्न होकर यहाँ के दु:खों से हमें छुड़ा देता है तो फिर परमपिता परमात्मा राजी हो गये तो फिर किसके अन्दर ताकत है जो हमको किसी प्रकार का कष्ट दे सके! परंतु परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए सच्चे प्रेम की आवश्यकता है।

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