जो सदा ही सुख-शांति में रहते हैं उसका सम्पन्न बनना पॉसिबल है। सम्पन्न माना सुख-शांति में सम्पन्न, सम्पत्तिवान। परिवर्तन माना अपने में सम्पूर्ण सम्पन्नता लाना। लौकिक दुनिया में कोई थोड़े होते हैं जो सम्पत्तिवान भी होते हैं परन्तु धर्मात्मा होते हैं, पुण्यात्मा होते हैं, लौकिक का कोई अभिमान नहीं होता। धर्मात्मा जो होते हैं, सच्ची दिलवाले बड़ी दिलवाले होते हैं। आप कौन हो? देवता बनने वाली आत्मा पहले धर्मात्मा बनती है। हर कर्म उनका श्रेष्ठ होता है। सफल करने में बहुत गुप्त होते हैं। तो प्रैक्टिकली अगर ऐसी जीवन बनती है ना, तो उसके लिए अति रिगार्ड होता है। शिवबाबा ने ब्रह्माबाबा को निमित्त बना करके सिखाया है, वह प्रैक्टिकल कौन करता है? क्योंकि प्रैक्टिकल करने का प्रभाव बहुत होता है। तो गुणग्राही बनना माना गुण का ग्राहक बनना। मेरे को देख किसी का अवगुण चला जाये। ऐसे ऑफर करने वाले बाबा के फूल बच्चे बनो।
6-5-13(जयन्ती बहन ने दादी जी की क्लासेस से कुछ मुख्य बातें सुनाई) बुद्धि की एक्सरसाइज़ करने से बुद्धि छोटी या मोटी नहीं होगी। जब स्वच्छता हमारे अन्दर होती है। तब सत्यता हमारे अन्दर ठहर सकती है। इससे आत्मा को आनंद का अनुभव प्राप्त हो सकता। इस एक-एक बात की गहराई में जाओ तो बहुत सारी बातें निकल आती हैं। भगवान ही मेरा संसार है तो मेरे संस्कार भी भगवान समान बन सकते हैं। ज्ञान और योग का सार यही है कि हम सबके साथ ताल-मेल बना करके रखें, सबसे पहले तो हमारी स्थिति ऐसी हो जो हम औरों के साथ मिलजुलकर संगठन में एकरस स्थिति में रह सकूँ और संगठन को एकमत बनाकर रख सकूं।