एक बहन माउण्ट आबू आई। वो विदेश में रहती है। दो मिनट के लिए वो मिली और जब उसने अपना अनुभव सुनाया तो मुझे लगा कि देखो ज्ञान में कितनी पॉवर है। उसने कहा मैंने एक दिन ऐसे ही टीवी देखा, प्रोग्राम देखा तो अच्छा लगा। पहले दिन उसने जो एपिसोड देखा फस्र्ट टाइम, फस्र्ट डे। एपिसोड ये था कि अगर आपकी फैमिली में किसी की डैथ(मृत्यु) होती है और वो आत्मा अपनी जर्नी पर आगे जाती है तो आपको उसको कैसे याद करना है। क्योंकि याद तो आयेगी, हमेशा आयेगी। लेकिन अगर आप रोके याद करेंगे, दु:खी होकर याद करेंगे, ये सोचकर याद करेंगे कि आप चले गए, आपके बिना मेरा कैसा होगा, वापिस आ जाओ, मुझे कैसे छोड़कर चले गए तो ये सारे थॉट्स, ये सारे वायब्रेशन्स कहाँ पहुुंचती हैं? कहाँ पहुंचती हैं? उस सॉल को पहुंचती हैं जो आगे किसी माँ के गर्भ में एंटर(प्रवेश) हो चुकी है। और ये सारी थॉट्स, ये सारी सोच जब उस बच्चे को पहुंचती है तो गर्भ के अन्दर वो बच्चा क्या होता है, बहुत दु:खी होता है, बहुत परेशान होता है। उस माँ को बड़ी तकलीफ होती है। अन्दर माँ के गर्भ में उस आत्मा का शरीर बन रहा है। और हम उसे इतनी दर्द की, दु:ख की, निगेटिव एनर्जी दे रहे हैं।
उस बहन ने फस्र्ट एपिसोड देखा। कहती मुझे अच्छा लगा और मैंने रोज़ देखना शुरू किया। चार ही दिन देखा था, सिर्फ चार दिन और सिर्फ बीस मिनट। पाँचवें दिन उसके 21 साल के बेटे की एक्सीडेंट में मौत हो गई, और उस दिन उसने क्या कहा कि जैसे ही मुझे फोन आया और मुझे ये बात पता चली तो मेरी जो फस्र्ट थॉट थी वो ये थी कि मैं खुद या अपने परिवार को मेरे बेटे को दर्द देने नहीं दूंगी। न मैं खुद रोऊंगी और न मैं अपने घर में किसी को रोने दूंगी। जो उसको याद करेगा, प्यार से याद करेगा। परमात्मा को कनेक्ट करके शांति और शक्ति भेजेगा। रोके कोई याद नहीं करेगा ये उसकी फस्र्ट थॉट थी।
जब उसको वो बात पता चली फिर उस बहन ने क्या किया सेंटर पर कॉन्टेक्ट किया। सेंटर से बहनों को घर पर बुलाया और कहा कि 7 दिन आप हमारे घर पर इतना मेडिटेशन करो, ऐसा वातावरण क्रियेट करो कि हमारे घर पर जो भी आए, वो शांत हो जाये, एकाग्र हो जाये रोना नहीं चाहिए कोई, और उन्होंने किया। एक माँ को बेटा याद नहीं आयेगा, ये हो नहीं सकता। मिस नहीं करेगी ये हो नहीं सकता लेकिन एक है याद दर्द में, और दूसरी याद शांति, शक्ति और प्यार में। दो बातों में फर्क है।
इतनी पॉवर है हमारे अन्दर कि हम जीवन की सबसे बड़ी बात जिसके लिए दुनिया कहे कि नैचुरल है कि अगर ऐसा कुछ पता चलेगा तो क्या होगा? नैचुरल की परिभाषा हमारी बहुत अलग है लेकिन अगर ज्ञान समझ में आ जाये कि हमारे रोने से और हमारे अन्दर उस तरह से सोचने से उस आत्मा को दर्द मिलता है, उस आत्मा को दु:ख मिलता है तो वो आत्मा पीछे की तरफ खींचती है। वो आत्मा अपनी आगे की जर्नी पर सेट नहीं हो पाती है। जब इतना सब समझ में आ जाता है तो सही सोचना बहुत इज़ी होता है… बहुत इज़ी होता है। और तब हमें ये पता चलता है कि हमारे अन्दर इतनी शक्ति है कि हमारे जीवन में कोई भी बात आ जाये एंड कोई भी मतलब कोई भी। तब हम उसका आसानी से सामना कर सकते हैं।