हम बहुत बार अपने स्वास्थ्य के लिए दवाईयों पर निर्भर होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए दवाईयों की जगह अगर ध्यान और योग का प्रयोग किया जाए तो हमारा शरीर ज्य़ादा स्वस्थ रहेगा। मेडिकल साइंस भी कहती है कि जब कोई दवा खाते हैं, पीते हैं, ये तो ज़रूरी है ही, लेकिन उससे ज्य़ादा ज़रूरी है खुश रहना। जैसे हमारी खुशी, शान्ति बढ़ती है मानसिक रूप से, तो हम शारीरिक रूप से स्वत: ही स्वस्थ हो जाते हैं। अत: ज़रूरत है मात्र जागरुकता की….
स्वयं की जागरुकता या स्वयं के प्रति स्वयं का ध्यान या स्वयं को आत्मा समझना तथा परमात्मा से प्रेमपूर्ण आत्मिक सम्बन्ध को ही राजयोग मेडिटेशन कहते हैं। राजयोग मेडिटेशन में हम अपनी शक्ति को सर्वशक्तिमान परमात्मा के साथ केन्द्रित करते हैं, साथ-साथ उनके साथ सम्बन्ध जोड़ते हैं, तब उनकी शक्तियाँ हमारे में प्रवाहित होती हैं। ऐसा लगातार करते रहने से सकारात्मक ऊर्जा की एक श्रंखला मन में बनी रहती है, जिससे मन अपनी शक्तियों के प्रति जागरुक होने के कारण जीवन के प्रत्येक मोड़ पर उसे सहजता से उपयोग कर पाने में समर्थ होता है। आत्मा के सात निजी गुण हैं, और उनका हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। अगर गुणों की ऊर्जा सकारात्मक है, तो उसकी ऊर्जा शरीर के विभिन्न अंगों पर सकारात्मक रहती है। अगर इससे विपरीत नकारात्मक सोच है तो उसका प्रभाव नकारात्मक अर्थात् नुकसान करता है। आत्मा के सात गुण हैं- ज्ञान, पवित्रता, शान्ति, सुख, प्रेम, आनन्द और शक्ति। आओ हम देखते हैं कि किस गुण का किस अंग पर प्रभाव पड़ता है….
ज्ञान – ये आत्मा का निजी गुण है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क से है और मस्तिष्क का सम्बन्ध सारे शरीर से होता है। इसलिए ज्ञान अर्थात् समझ का सही उपयोग और प्रयोग करने पर शरीर की संरचना पर उसका प्रभाव पड़ता है और मस्तिष्क सही रूप से कार्य करता है।
पवित्रता – पवित्रता का सम्बन्ध हमारे इम्यून सिस्टम से है। हमारा शरीर पवित्रता की शक्ति से ही कार्य करता है। अगर इस शक्ति की कमी है तो बार-बार हमें वीकनेस फील होती है और बार-बार हम वायरल इन्फेक्शन के शिकार बन जाते हैं। पवित्रता के व्रत का पालन करने से मनुष्य निरोगी रहता है। उससे हमारी आयु भी बढ़ती है। साथ-साथ चेहरे पर तेज आता है और मन सबल होता है।
शान्ति – शान्ति आत्मा का स्वधर्म है। शान्ति से ही हर कार्य सुचारू रूप से संचालित होता है। शान्ति के कारण हमारा मस्तिष्क भी श्रेष्ठ और सरलता से कार्य करता है। इसलिए तो शान्ति हर इंसान को पसंद है। श्वासोश्वास की प्रक्रिया में अगर शान्ति है तो रोम-रोम तक ऑक्सीज़न पर्याप्त मात्रा में पहुंचता है। अगर डर और चिंता है, तो चिंताग्रस्त रहने से हमारे श्वास की गति तेज़ हो जाती है और हमारी आयु भी कम हो जाती है।
प्रेम – कहते हैं, प्रेम पत्थर को भी मोम बना देता है। प्रेम का सीधा-सा सम्बन्ध हमारे हार्ट ऑर्गन से है। इसलिए तो कहते हैं, जो करो वो दिल से करो, माना प्यार से करो। अगर प्रेम भाव में थोड़ी भी कमी है, तो वहाँ असुरक्षा, दीन-हीन की भावना हमारे हृदय प्रणाली को प्रभावित करती है। और यदि हृदय में प्रेमभाव है सबके प्रति, तो आपका हार्ट भी मजबूत हो जाता है और आपकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
सुख – सुख का सम्बन्ध हमारी आँतों से है। आत्मा के सुख की शक्ति हमारी आँतों के सिस्टम को मैनेज करती है। सुख अर्थात् खुशी से लिवर और आँतें ठीक तरह से कार्य करते हैं। तभी तो कहते हैं, खुशी जैसी खुराक नहीं।
आनन्द – आनन्द का कनेक्शन हमारे शरीर में पिट्यूटरी गं्रथि और पैंक्रियाज़ आदि को कन्ट्रोल करता है। आनन्द हमें भौतिक वस्तु, व्यक्ति, वैभव से प्राप्त नहीं होता, बल्कि परमात्मा पर ध्यान एकाग्र करने से प्राप्त होता है। हमारी पूरी त्वचा और बाल तीन महीने में बदल जाते हैं और शरीर की हड्डियां 6 महीनों में बदल जाती हैं। केवल मस्तिष्क की कुछ कोशिकायें ही इससे अप्रभावित रहती हैं, जिन्हें हम मेमोरी सेल्स कहते हैं। ये सब आनन्द की परसेन्टेज पर निर्भर करता है।
शक्ति – शक्ति का सम्बन्ध पृथ्वी तत्व से जुड़ा हुआ है और पृथ्वी तत्व से हमारे अस्थि तंत्र का निर्माण होता है। अगर हमारे अंंदर पवित्रता की शक्ति की कमी है तो हमारी हड्डियों आदि में दर्द होना शुरू हो जाता है। आत्मा के सातों गुण मिलकर शरीर को चलाते हैं। इन सातों गुणों को सुचारू रूप से संचार करने का माध्यम हमारा मन है। यदि मन में प्रेम, शान्ति, सुख विचार चलते हैं, तो निश्चित ही मन भी स्वस्थ रहेगा, साथ-साथ तन भी तंदुरुस्त रहेगा। आत्मा इन्हीं सातों शक्तियों से मिलकर सतोप्रधान बनती है।


