भारतवर्ष में प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है। गाँव हो या शहर चारों तरफ चहल-पहल रहती है। तरह-तरह की श्रीकृष्ण की आकर्षक झाँकियाँ बनाते है। लोग उसे देखने के लिए बेताब रहते हैं। मनमोहक श्रीकृष्ण को देखने के लिए भीड़ लग जाती है। क्योंकि उनका व्यक्तित्व मन को हरने वाला है। श्रीकृष्ण को सोलह कला सम्पूर्ण मानते, उसके मनमोहक रूप को देखने लिए लालायित रहते, लेकिन हमने कभी सोचा कि हममें भी ये सुंदरता है, जिसे हमने अभी तक निहारा ही नहीं। हममें निहित कलाओं के ऊपर भी क्या कभी हमारा ध्यान गया? तो मनमोहन की झाँकी के साथ अपने अंदर भी झाँक कर देखो तो आप पायेंगे कि आप भी इतने ही सुंदर और आकर्षक हैं।

सुंदर लोग तो आज भी संसार में बहुत हैं परन्तु श्रीकृष्ण तो सर्वांग सुन्दर थे। क्या आज ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसे सर्वांग सुन्दर कह सके ? यदि आज के संसार में हम दृष्टि डाले तो कोई भी ऐसा मानव नही होगा जिसके तन पर, अपने ही मन द्वारा क्रोध का प्रहार न हुआ हो, लोभ ना हो, कुदृष्टि के कुठाराघात से बच गया हो। तब भला हम किसी को सर्वांग सुन्दर कैसे कह सकते? संस्कारों के आधार पर ही शरीर बनता है और कर्मफल ही तो शरीर गढऩे में निमित्त बनते हैं। अत: विचार कीजिए कि वह तन कितना सुन्दर होगा जिसके अन्दर रहने वाला उसका मन सदा हर्ष में नाचता हो, होठों पर सदा मुस्कान रहती हो और नयनों में सदा सम्पूर्ण शान्ति बसती हो। ऐसा सौन्दर्य श्रीकृष्ण का था। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के भक्त श्रीकृष्ण की झाँकियां तैयार करते हैं और रथ पर झाँकियों को समस्त नगर में घुमाते परन्तु वे यह नहीं सोचते कि श्रीकृष्ण का जीवन ऐसा बना कैसे? केवल झाँकि देख-देख खुश होते हैं, जितना समय झाँकि देखते उतना वक्त खुशी,आनंद में झुमते हैं। उनकी महानता का गुणगाण भी करते हैं। पूजा, अर्चना, आरती करते हैं परंतु झाँकी देखकर फिर अपने जीवन में नहीं झाँकते। यह नहीं देखते कि हमारे जीवन में अभी कितनी महानता आयी हैं? श्रीकृष्ण के झाँकी देखने के साथ-साथ अपने जीवन को भी आहार-विहार-विचार के शुद्धिकरण की आवश्यकता है। हमारे दामन में कहीं कोई दाग तो नहीं! तब पायेंगे कि अरे, हम सभी आज अपने ही संस्कारों से परेशान हैं, दु:खी हैं और दूसरे भी हमारे संस्कारों की वजह से दु:खी हैं। इसलिए झाँकी देखें और स्वयं के अंदर झाँकते भी रहे, कुछ परिवर्तन भी करते रहे तब झाँकी देखने में सार्थकता होगी। इसी पर्व पर लोग बिजली के सैकड़ो बल्ब जगाकर खूब उजाला करने का यत्न करते है, परन्तु आज आत्मा रूपी बल्ब तो फ्यूज हो चुका है। बाहर तो रोशन की जाती है परन्तु आत्मा रूपी चीराग के नीचे अन्धेरा है। तो आईये हम सभी मिलकर सच्ची-सच्ची जन्माष्टमी मनायें, श्रीकृष्ण समान सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मार्यादा पुरूषोत्तम और सम्पूर्ण अहिंसक स्वयं को बनायें। सदियों से हम श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते आये है, झाँकियाँ सजाते आये है, हम इस बार परंपरागत रूप से ही कृष्ण की झाँकी बनाकर इस महान त्योहार को मनायेंगे या अपने मन को भी उस मनमोहक की तरह बनायेंगे, जिस मुरलीधर को हम जाने अनजाने भी भूल नहीं पाते! आज के दौर में आवश्यकता है अपने मन में उठने वाले राक्षसी वृत्तियों का संहार कर मन को मनमोहन जैसा सुंदर बनाने की। तो आइये, इस तरह से इस बार हम जन्माष्टमी के त्योहार को मनाकर अपने जीवन में देवत्व लाने का संकल्प लें।
बी.के. दिलीप राजकुले, ओम शांति मीडिया



