मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीबाबा ने हमें नाम दिया है - तुम हो विश्व के नव...

बाबा ने हमें नाम दिया है – तुम हो विश्व के नव निर्माता…

आज हरेक अपनी डायरी में नोट करो कि मैं संस्कारों से मुक्त हूँ। अगर संस्कार कभी इमर्ज हों तो समझो संस्कारों के वश हैं। जब कोई कहता मैं क्या करूँ, मेरे संस्कार हैं ना! तो मुझे उसके ऊपर बहुत तरस आता है। मैं कहती तुम इस सुहावने संगम की स्वर्णिम लॉटरी को क्यों खत्म करते हो? जब सहारा मेरा बाबा है, तो उसका सहारा छोड़ संस्कारों का सहारा क्यों लेते हो? उन्हें क्यों प्रधान बनाते? तुम लेके सहारा बाबा का इन सबको खत्म करो।

कोई राजा भी जब हार खा लेता तो हथियार आदि सब सरेन्डर कर देता है। हमें अपने संस्कारों को सरेण्डर कर देना है। जो अपने संस्कारों को बाबा के चरणों में सरेण्डर करता वही राजतिलक पाता है। संस्कारों को मार दो तो सब झगड़े समाप्त हो जाएंगे।

मैंने देखा है – जहाँ युवा वर्ग है – विशेषकर कुमार हैं वहाँ कभी-कभी पार्टीबाजी हो जाती है। आपस में किसी बात में मतभेद होगा – कहेंगे अच्छा दिखाऊंगा, बताऊंगा… अरे किसको दिखाओगे, बताओगे? मैंने देखा है – थोड़ा भी रूची नहीं होगी तो कहेंगे जाओ – जाकर करो। खुद सो जाते, समझते मैं सहयोग दूँगा तो काम होगा। अगर नहीं दूँगा तो काम बन्द हो जाएगा। बिल्कुल ही बुद्धि विपरित हो जाती है। हम सब तो सर्वेन्ट हैं। बाबा के सहयोगी हैं, इसलिए किसी की ऐसी रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए। न कभी पार्टीबाजी करो, न अपनी होशियारी दिखाओ, न शैतानी दिखाओ… बाबा के घर में किसकी भी बाह्यमुखता चल नहीं सकती। ऐसा जो करता वह चल नहीं सकता। आप अपने संस्कारों की होशियारी किसको दिखाते हो। बाबा को? ब्राह्मणों को? इसलिए बाबा ने हमें नाम दिया है – तुम हो विश्व के नव निर्माता। हम सब हैं अपनी जीवन का और विश्व का नव निर्माण करने वाले। हम विश्व के निर्माता हैं। निर्माता माना माँ बनकर, मातृ स्नेही बनकर निर्माण करना। इसलिए अपना चार्ट चेक करो। अष्ट शक्तियों को रोज़ देखो और अपनी शैतानियों को समाप्त करने का संकल्प करो। जब सब पुरानी आदतें समाप्त हों तब कहेंगे भट्टी की सफलता। तभी जयजयकार होगी।

तुम कुमार हो – डबल लक्की। तुम्हें अनेक सहज साधन मिले हैं। तुम स्वतन्त्र रह सकते हो। सच्चे सन्यासी जीवन में रह सकते हो। तुम अकेले रह सकते हो, अकेले सेवा में जा सकते, बुद्धि का दान दे सकते। सबसे अधिक लक्की आप हो। बिल्कुल स्वतन्त्र हो। आप फ्री हो, कमाओ मौज करो, आपको कोई भी चिंता नहीं। कुमारी जीवन भी बन्धन की जीवन है। कुमारों का चोला बन्धन मुक्त चोला है। तन की शक्ति, मन की शक्ति, धन की शक्ति है। कुमारियों को चोला ही ऐसा मिलता जो सम्भालना पड़ता।

आप बाबा के लक्की बच्चे हो। जहाँ कुमार हैं वह गुलदस्ता फलीभूत है। परन्तु पार्टीबाजी से मैं नमस्कार करती हूँ। पार्टीबाजी के संस्कार यहाँ छोड़कर जाओ। ईश्वरीय बन्धन का कंगन बांधो। यह जीवन हर्षितमुख रहने की है। हँसी-मज़ाक नहीं। हँसी-मज़ाक भी बड़ा नुकसान करती है। यह जीवन रूह रिहान करने की है। फालतू बातें करने की नहीं। इसलिए बैठकर आपस में रूह रिहान करो। तेरी-मेरी बातें करना, बैठकर एक-दूसरे की कमियों का वर्णन करना, यह मर्यादा नहीं। बहन से अकेले में बैठकर बातें करना भी ब्राह्मणों की मर्यादा नहीं। जो इस मर्यादा की लकीर को छोड़ता, वह अपने स्वमान को छोड़ता है।

देह की आकर्षण भी विषैला सांप है। एक आकर्षण में आता, 100 पर दाग लगाता। ऐसा दाग कभी भी न लगाओ। बाबा का यह स्ट्रिक्ट ऑर्डर है। कई कहते हमें सेन्टर पर भोजन मिले। मैं कहती हूँ, बाबा का घर सो तुम्हारा घर है। भोजन की बात नहीं लेकिन देखा गया है इससे हमारी ईश्वरीय मर्यादा टूटती है। इसलिए यह भी बन्धन है। कइयों को यह बन्धन बहुत कड़ा लगता। लेकिन यही बन्धन हमारे स्वमान को आगे बढ़ाने वाला है। हमारा नियम है – जितना हम पवित्र भोजन खायें उतना अच्छा है, लेकिन कोई कुमार अपनी माँ के साथ रहे और कहे हम तो अपने हाथ से बनाकर खाएंगे- तो इससे बहुत बड़ी डिससर्विस होती है, झगड़ा होता है। वैर-विरोध करके ब्रह्माकुमारी संस्था का नाम-बदनाम करो, ऐसी नौबत नहीं आनी चाहिए। जहाँ तक हो सके योग की शक्ति को बढ़ाओ, आदतों से मुक्त रहो।

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