मन की बातें

प्रश्न : आजकल एक्सीडेंट बहुत बढ़ गए हैं जब मेरे पति और बच्चे घर से बाहर जाते हैं तो दिन में डर लगा रहता है कि कहीं कुछ हो न जाए, तो ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर : एक्सीडेंट का कारण क्या है मन का भटकाव। मनुष्य गाड़ी कहीं चला रहा है और सोच कुछ और रहा है। फोन से बात कर रहा है। कोई चिंताओं में गाड़ी चला रहा है। ये सब तो कारण है ही। लेकिन आपको ये सब संकल्प समाप्त कर देना चाहिए। जैसे आपका बच्चा या पति बाइक चलाये या कार चलाये या आप साथ में कार में जायें तो साथ-साथ ये संकल्प करना और उन्हें भी सीखा देना कि जैसे ही यात्रा शुरु करें तो जैसे बोलते हैं ना हैप्पी जर्नी। तो यही संकल्प करें कि तुम्हारे साथ तो शिव बाबा है। तुम्हारी यात्रा पूर्ण सुरक्षित और सफल होगी। अपने मन में यही संकल्प करें कि ये दोनों बहुत सुरक्षित हैं। बिल्कुल सफल यात्रा करके आयेंगे।
मेरा बच्चा, मेरा पति शिव बाबा की छत्रछाया में है। वो सदा इनका रक्षक है, वो सदा इनके साथ है। ऐसे सुन्दर संकल्प करेंगे तो आपका भय भी समाप्त हो जायेगा और उनके पास आपके भी और शिव बाबा के भी गुड वायब्रेशन जाते रहेंगे। हरेक को सुबह उठकर ये अपना रूटिन बना ही लेना चाहिए पहले सात बार याद करें मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, मैं निर्भय हूँ, मेरा जीवन निर्विघ्न है, मैं सफलतामूर्त हूँ, सफलता तो मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। ये सुन्दर संकल्प रोज़ सवेरे उठकर सात बार करने की आदत डाल दें। तो ये भय के संकल्प पैदा करने का जो एक संस्कार बन गया ना ये छूट जायेगा।

प्रश्न : क्या प्याज-लहसून का खाना खाते हुए हम राजयोग का अभ्यास कर सकते हैं या नहीं?
उत्तर : अगर राजयोग के माध्यम से हम उसके पास पहुंच रहे हैं मन-बुद्धि से तो हमारी वो दुर्गन्ध तो उनको भायेगी नहीं। इसलिए सफाई की दृष्टि से भी और एक रॉयल मैनर की दृष्टि से भी इन चीज़ों का सेवन वर्जित है क्योंकि राजयोग प्युरिटी से चलता है। शुरुआत ही इसकी वहाँ से है। परमात्मा पवित्रता के सागर हैं उससे बुद्धियोग लगाने के लिए, उससे मिलन करने के लिए उस व्यक्ति को प्युरिटी बढ़ानी चाहिए। ये सब चीज़ें तामसिक मानी जाती हैं। ये तमोप्रधान चीज़ें हैं। ये वासनाओं को बढ़ाती हैं इसलिए इनका त्याग करना ही अच्छा है और घरों में ये समस्या तो हर किसी को आती ही है लेकिन जो नियम हैं नियम हैं। अगर डॉक्टर कह दे कि आपको ये नहीं खाना तो तब भी तो हम मानते ही हैं ना! जब घर में ऐसी कोई प्रॉब्लम आती है दूसरे खाना चाहते हैं तो आप उनको तो बनाकर दे ही दो लेकिन खुद को अवॉयड करना चाहिए। कई बोलते हैं कि लहसुन मेडिसिन के रूप में उपयोग किया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे ही ठीक होंगे। लोग खा भी रहे हैं लेकिन बीमारियां तो बढ़ती ही जा रही हैं। अपने अन्दर प्युरिटी बढ़ाने से सबकुछ अच्छा होगा। इस समय भगवान इस धरा पर कार्य कर रहा है तो हमें उसकी आज्ञाओं का पालन करना है। उससे बड़ा बुद्धिमान और उससे बड़ा परम सत्य का घाटक और कोई हो नहीं सकता। उसने आदेश दिया है कि ये सब तामसिक चीज़ें छोड़ दो। तुम देवों की संतान हो, तुम देव कुल की आत्मायें हों। तुमको देवत्व को प्राप्त करना है। इसलिए अब हमें भगवान की बात माननी है। हमें राजयोग के लिए, प्रभु मिलन करने के लिए, अपने जीवन को सुख-शांति से भरने के लिए कुछ समय छोड़ ही देना चाहिए।

प्रश्न : जब विशेष देवियों के दिन आते हैं तो लोगों में देवियों का प्रवेश होने लगता है, क्या ये सही है? अगर नहीं है तो वो सब कौन हैं? कृपया इसका जवाब मुझे बतायें क्योंकि देवियां जब आयेंगी तो कम से कम ऐसे तो नहीं करेंगी जैसे आ जाती हैं तो वो सिर हिलाने लगती हैं।
उत्तर : वास्तव में ये जो भटकती हुई आत्मायें हैं वो किसी में प्रवेश कर लेती हैं और कह देती हैं कि मैं देवी हूँ मुझे भोग खिलाओ, मुझे ये खिलाओ, मुझे वो खिलाओ। ये अतृप्त आत्मायें हैं। जब मनुष्य थे तब इनकी इच्छायें अधूरी रह गई होती हैं, तब वो उन्हें मिलता नहीं था इसीलिए वो उसकी डिमांड करते हैं। ये कोई भी देवियां नहीं होती। देवियां तो पवित्र होती हैं। जब देवियां आयें तो वातावरण में भी सुगन्ध छा जाए। वायब्रेशन बिल्कुल पवित्र हो जाये, देवी कोई सिर हिलाये या किसी को पटके, ऐसा-वैसा कहे ऐसा नहीं होता है। ये आत्मायें आती हैं जो इधर-उधर भटक रही हैं। इनमें कुछ अच्छी भी होती हैं मान लो किसी ने बहुत अच्छी साधनायें की हों और किसी कारण से उसे शरीर नहीं मिला, उससे कुछ पाप हो गया। वो लोगों को मदद करती हैं, उनका उपचार करने में मदद करती हैं। कोई विधियां बता देती हैं। कोई छोटे-मोटे बिगड़े काम ठीक करा देती हैं। किसी का बच्चा खो गया वो बता देती हैं कि कहाँ हैं क्योंकि वो बॉडीलेस हैं ना,उसको सब दिखता है। इसको तो लोग समझते हैं कि वो तो बहुत बड़ी शक्तियां हैं। वास्तव में वो सबकुछ नहीं होता है। राजयोग तो सबसे मुक्त रखता है। ये तो बहुत छोटी चीज़ हो गई। भक्ति जैसे मैंने कहा क्योंकि तमोप्रधान हो गई है। उसका ये स्वरूप है।

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