किसी की खामी को अपनी वृत्ति-दृष्टि में रखना यही सबसे बड़ी भूल है…

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बाबा रोज़ इतनी अच्छी नई बात सुनाता रहता है, जो सारा दिन बार-बार वह बात याद आती है। जैसे आज सुनाया कि किसी की खामी नहीं देखो, खामी देखना यह बड़ी खामी है क्योंकि संगम का समय है, घर जाने की तैयारी कर रहे हैं। नाटक में हरेक का पार्ट अपना-अपना है पर मेरा पार्ट क्या है। तो अपने पार्ट को देख मूँझो नहीं, पूछो नहीं। हरेक के पार्ट की अगर खूबी दिखाई पड़ रही है ना, तो कहेंगे बहुत अच्छा है, अगर खामी दिखाई पड़ रही है तो कहेंगे यह अच्छा नहीं है। इसकी यह खूबी वन्डरफुल है, भले वो खूबी मेरे में नहीं है, लेकिन मैं कोई निराश नहीं हूँ पर साक्षी होके देखते हैं तो बहुत अच्छा लगता है, बाबा मेरा साथी है, बाबा के संग रहने से साक्षी होके देखना, प्ले करना बहुत अच्छा लगता है। अभी हरेक एक सेकण्ड के लिए इस फीलिंग में आओ कि बाबा मेरा साथी है। मैं उसका बच्चा हूँ ना। बच्चा दिन-रात माँ-बाप के संग में रहता है तो उसके संस्कार भी वैसे बन जाते हैं। तो साक्षी और साथी दोनों का बल मिलता है। साक्षी हैं तो संगठन की शक्ति का स्नेह मिलता है। फिर बाबा के साथ का बल निराकारी और अव्यक्त स्थिति का अनुभव करा देता है। बाबा ने कैसे अपनी अव्यक्त स्थिति बनाते सम्पूर्ण स्थिति धारण कर ली। तो जी चाहता है ऐसा ही हम सब भी मिल करके पुरुषार्थ करें और उस सम्पूर्ण सम्पन्न अवस्था को प्राप्त कर लें। अभी-अभी यहाँ हैं, अभी-अभी वतन में हैं। यहाँ निमित्त मात्र हैं, सेवा अर्थ हैं, यह सेवा का चांस फिर नहीं मिलेगा। एक बारी बाबा से पूछा कि जब बाबा खाता नहीं है तो भोग क्यों लगायें? बाबा ने कहा यह भी रिगार्ड है, आखिर भी खिलाने वाला वो है। उसको स्वीकार न कराके, ऐसे ही जीभ रस वश खाना… गीता में लिखा है वो चोर है इसलिए याद में रहके, भोग लगा करके खाना ईमानदारी है। हम कर्मेन्द्रियों के वश नहीं हैं इसलिए कहा जाता है शिवा बाबा के भण्डारे से ब्रह्माभोजन स्वीकार करते हैं। एक-एक शब्द अर्थ सहित है। जब भी कोई लिफाफा देते हैं तो कहेंगे भण्डारे के लिए है। इस यज्ञ में बीज बोने से कितना भाग्य बन जाता है। भावना है कि यह भगवान का यज्ञ है। सुदामा मिसल थोड़ा-सा कणा दाना सफल करके अपने को धन्य समझते हैं। जिसके पास ज्य़ादा पैसे होते हैं वो सोचते ही रहते हैं इसलिए थोड़ा होगा तो अच्छा है, बाबा खिलायेगा। मेरे से भूल हुई या किससे भी हुई उसे फिर से सोचो नहीं, बोलो नहीं, देखो भी नहीं क्योंकि देखते हैं तब तो कहते हैं कि मैंने देखा ना इसकी यह भूल थी, कितने समय से यह ऐसी भूलें करता आ रहा है इसलिए देखो ही नहीं क्योंकि यह सोचना, बोलना, अन्दर वृत्ति-दृष्टि में रखना यह बहुत बड़ी भूल है। मानो कल भी किसी ने भूल की तो वह आज याद न आवे। दादी जानकी जी बाबा की दृष्टि महासुखकारी है। शुरू के दिनों में हम बाबा की दृष्टि से जैसे पागल हो गये थे। ऐसे में बाबा हमारी टेस्ट लेने के लिए 2-3 महीना कहीं चला गया। वहाँ बैठे भी वायुमण्डल में बाबा के ऐसे वायब्रेशन आते थे जो हर एक को सहयोगी बना देते थे। बाबा ने अपने अनेक बच्चों को सहयोगी बना करके सहज योगी बना दिया है। हम हंसी में कहती थी, कि हम मुफ्तलल कम्पनी में रहते हैं। वो तो कपड़े की मील का नाम था। लेकिन हम बिगर कौड़ी बादशाह हैं, बेफिक्र बादशाह हैं। थोड़ा-सा सम्पूर्ण बनने का, बाप समान बनने का फिक्र है। बनना है ज़रूर, पर मैं बनूं, उसका सबूत है – आसमान में देखो सारे स्टार्स दिखादे देते हैं। लेकिन चन्द्रमा की चमक अपनी होती है। तो हमारा भी ऐसा फूल मून डे की तरह सम्पूर्ण रूप हो। एक भी लकीर कम है, आगे की या पीछे की तो वो आकर्षण नहीं है। तो सम्पूर्ण चन्द्रमा समान बनने के लिए ज़रा भी कमी न हो। यह दिल में अगर हमारी भावना है तो भगवान छोड़ेगा, भले अभी अलबेलाई में सुस्ती में कोई न कोई कारण से पुरुषार्थ ढीला है लेकिन ऐसा समय आयेगा जो बाबा खड़ा कर देगा। तो हमेशा मैं स्वयं को समझाती हूँ कि यह वक्त जा रहा है… फिर से नहीं आयेगा। अभी जो आपस में एक दो का सहयोग है, आपस में स्नेह, प्रीत है। यह फिर नहीं होगा इसलिए हर आत्मा भाई-भाई है, यह अभ्यास अन्दर से पक्का हो। भले मैं अकेली बैठी हूँ या 10 के साथ बैठी हूँ, पर दृष्टि में हम आत्मायें भाई-भाई हैं। तो मैं सोचती हूँ यह पुरुषार्थ देवतायें थोड़े ही करेंगे सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग, कोई भी युग में पुरुषार्थ नहीं है। उतरती कला है, बॉडीकॉन्सेस शुरू हो जाता है। सतयुग में तो यहाँ के पुरुषार्थ के अनुसार बहुत गुणवान होंगे, कोई कमी नहीं होगी। पर पुरुषार्थ करने का अभी जो समय है, इसमें बहुत फायद है। समय साथ दे रहा है। मैं सच्ची बात सुनाती हूँ, जो भी बात है संकल्प में या कोई भी बात में समय व्यर्थ नहीं गंवाती हूँ, मन खाता है। हम आपस में ऐसे मिलकरके बैठते हैं, योग करते हैं, रूहरिहान करते हैं या अकेले हैं, खाना खा रहे हैं, पर खाते भी बाबा अच्छा याद आ सकता है। याद अन्दर की बात है, खाना मुख द्वारा ख रहे हैं, याद अन्दर कर रहे हैं, यह अभ्यास संगम पर जो करते हैं वो बहुत सुख पाते हैं। हम कोई साधारण ईश्वर ने पढ़ाया है, पढ़ाई कितनी ऊंची है। जितना पढ़ाई में अटेन्शन दो उतना कमाई होती है। वहाँ पढ़ाई में पहले खर्च करना पड़ता है, वहाँ हर सब्जेक्ट को पढ़ाने वाला टीचर अलग होता है, सेम टीचर नहीं पढ़ायेगा। मैथेमेटिक्स का अलग होगा,ड्राइंग का अलग होगा और हमारा चारों सब्जेक्टस का टीचर भले एक घंटा पढ़ाता है, पर उस एक घंटे की पढ़ाई में भी बहुत कमाई कराता है। सारे दिन में हम होमवर्क करें तो बहुत अच्छा है। उस स्कूल में भी कोई स्टूडेंट अगर होमवर्क नहीं करते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। तो हम भी स्टूडेंट हैं, पढ़ाने वाले का जो एम है, जैसे वह बोलता है, पढ़ाता है वो होमवर्क लाइफ में यूज़ करने से कमाई हो जाती है। कमाई होने से फिर सेवा जितनी करो, औरों को अच्छे संग का रंग लगे ना, तो खुशी ज्य़ादा होती है। मैं अकेली सेवा नहीं कर रही हूँ सब मिल करके कर रहे हैं। मैं साक्षी हो करके देखती हूँ यहाँ लेबर भी जो झाड़ू लगाते हैं वह भी बहुत अच्छा मुस्कुराते हैं। लेकिन बाबा के बच्चे कोई तो ऐसे हैं जिनके लिए मुस्कुराना बहुत मुश्किल है। सीरियस हो जाते हैं, सीरियस रहने की नेचर खुशी खत्म कर देती है। उसको देख करके कोई खुश नहीं होगा। कई बार मैं अन्दर से अपने आपको पदमापदम भाग्यशाली समझती हूँ जो देखे वह मुस्कुराये।

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