जो मैं सोच रही हूँ, उसे मैं क्रियेट कर रही हूँ

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जब हम खुशी की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि खुशी शायद होठों तक ही सीमित है या मेरी हँसी तक ही सीमित है, चाहे जब मैं बच्चों के साथ होती हूँ, तब खिलखिलाहट होती है, वहीं तक सीमित है, लेकिन वो हँसी है, वो खिलखिलाहट है, खुशी नहीं है। खुशी मेरे अंदर की चीज़ है, मेरे अंदर की वो फीलिंग है जिसे मैं खुद क्रियेट करती हूँ। अभी तक हमें ये बात समझ में नहीं आ रही थी। लगता था कि यही सब बातें हैं जो बाहरी रीति से हो रही हैं या बाहर हो रही हैं, उसी पर मेरी खुशी निर्भर है और यह निर्भरता भी बहुत ज्य़ादा थी।
लेकिन इस शृंखला में जहाँ हम बात कर रहे हैं खुशी की तो हमें ये बात समझ में आयी कि ये मेरी क्वालिटी भी है और मेरी क्रियेशन भी। इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि उसे क्रियेट करने के लिए मुझे अपने थॉट्स पर ध्यान देना पड़ता है यानी कि मैं जो सोच रही हूँ, उसे मैं क्रियेट कर रही हूँ।

प्रश्न : जब हमने अपने आपको चेक किया तो समझ में आया कि खुशी मेरी अपनी क्रियेशन है। कौन-सी ऐसी बातें हैं जो थॉट्स को क्रियेट करती हैं?
उत्तर : हमने जैसे देखा कि परिस्थितियां आती हैं, लोग अच्छा-बुरा व्यवहार करते हैं तो कहीं न कहीं हमारा जीवन हमारे नियंत्रण से बाहर चला जाता है। तब ये थॉट चलनी शुरू होती है कि आखिर इस तरह से जीवन कब तक चलेगा! फिर हमने हैप्पीनेस के ऑपोजि़ट वाली फीलिंग चाहे वो चिंता की है, चाहे वो गुस्से की है, हम उसे स्वीकार करना शुरू कर देते हैं क्योंकि परिस्थिति पर थॉट निर्भर करती है और परिस्थिति सदा हमारा साथ देने वाली नहीं है। हमेशा रिश्तों में हर चीज़ मेरे अनुसार चले ये होने वाला नहीं है, लोग मेरी आशाओं को हमेशा पूरा करते रहें ये होने वाला नहीं है, जैसा मैं सोचूं, आप भी वैसा सोचें ये होने वाला नहीं है, हम जैसा व्यवहार करें आप भी वैसा ही व्यवहार करें, ये होने वाला नहीं है। हमारी खुशी आपके व्यवहार पर निर्भर है, यह हमारे लिए बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। तब हमने रियलाइज़ किया कि परस्थिति तो बाहर से आती है, थॉट हम क्रियेट करते हैं। अगर हम अपने आपको देखना शुरू करें और स्वयं को बदलना शुरू करें तो हो सकता है कि उसी परिस्थिति में हम अपने आपको थोड़ा-सा अच्छा अनुभव कर सकते हैं।
पहली बात तो हमें ये समझनी है कि खुशी क्या है? क्या हम बहुत ज्य़ादा उमंग-उत्साह की बात कर रहे हैं! नहीं। खुशी का अर्थ यह नहीं है कि हम सदा उछल-कूद करते रहें। कहीं कुछ बात हो गयी है, घर में कोई हादसा हो गया है, कोई बीमार है, किसी की मृत्यु हो गई है, आप उस समय कहोगे कि मैं खुश रहूँ, उस समय मैं खुश नहीं रह सकती हूँ, लेकिन स्थिर तो रह सकती हूँ! ऐसी परिस्थिति में दु:ख-दर्द क्रियेट होना तो स्वाभाविक है। क्योंकि जितना हम स्थिर रहेंगे, उतना हम उस परिस्थति को अच्छी तरह से समझकर पार कर सकेंगे।
जिस क्वालिटी के हम थॉट क्रियेट करेंगे, उसी क्वालिटी की फीलिंग हमारे अन्दर उत्पन्न होगी, फिर वैसी ही हमारी वृत्ति बनेगी, फिर हमारा व्यक्तित्व भी वैसा बन जायेगा। फिर वैसा ही हमारा भाग्य बनेगा।

प्रश्न : आज हमें ये समझ में आ गया कि थॉट्स ही सबकुछ कर रहा है, लेकिन थॉट्स को मैं कैसे परिवर्तन करूँ, मुझे तो निगेटिव सोचने की आदत पड़ गई है?
उत्तर : हमारे थॉट्स पर सूचना, बीते हुए समय का अनुभव और हमारी मान्यताओं का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। मैं अपने अनुभव से कह सकती हूँ कि इन तीनों में से क्रहमारी मान्यतायेंञ्ज हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही जबरदस्त रोल प्ले करती हैं। सूचना पर तो आप थोड़ा ध्यान रख सकते हैं कि हमें अंदर क्या लेना है और क्या नहीं लेना है।
बीते हुए समय के अनुभव में भी हमने देखा कि उसके ऊपर काम करें तो वह ठीक हो सकता है, लेकिन विश्वास जोकि बचपन से शुरू होकर जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है वह भी हमारे मन में गहराई तक बैठता जाता है।

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