यहाँ मैंने शांति का साम्राज्य और प्रसन्नचित वातावरण तथा सबकुछ सुव्यवस्थित व आदर्श करने वाली बातें जानी और देखीं। मैं जिससे भी मिला उनके सबके अनुभव एक नम्रचित्त और सूक्ष्म दिव्यता सम्पन्न हैं। यहाँ परमात्मा की छत्रछाया मेें बाह्य वातावरण से सुरक्षित हैं। ऐसा वातावरण इस धरा पर कहीं और होना सम्भव नहीं। हम जानेंगे संस्थान के अनुभव उन्हीं के शब्दों में…
आदरणीय श्री सिद्धपीठ पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी कौशल किशोर दास जी,सिद्धपीठ श्री लालजी महाराज मंदिर खोरी,भरतपुर, आपने सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय से वेदान्ताचार्य, राष्ट्रीय भवन में मुंबई से न्यायचार्य, काशी विद्यापीठ से एम ए, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आप कर्मकान्ड और भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता और विज्ञान की दृष्टि से विश्लेषण करते हैं, आपका गहन चिंतन है। आपने विशेष पर्यावरण, गौ शाला और समाज सुधार के अनेक कार्यक्रम किये हैं। आपको,आपके गुरुजी को भरतपुर महाराजा से पाँच सौ बीघा ज़मीन सिद्धपीठ को सम्भालने के लिए प्राप्त है और आप बहुत ही विनम्र और बहुत ही संस्कारवान बाबा के बच्चे हैं। आदरणीय दादियों से भी आपकी मुलाकात बड़ी अच्छी तरह से हो चुकी है। तीसरी बार आपका इस संत सम्मेलन में मधुबन में आगमन हुआ।
यहाँ आकर के जिस अलौकिक शांति का अनुभव कर रहा हँू, जो-जो अनुभूतियां हो रही हैं, जो वायब्रेशन मिल रहे हैं उनका वर्णन कैसे करूँ? यदि गूंगे व्यक्ति को कोई गुड़ खिला दे और पूछे इसका स्वाद कैसा है,तब गूंगा व्यक्ति क्या बतायेगा? केवल सिर हिलायेगा, संकेत करेगा मगर जो स्वाद मिला है उसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। उसी तरह से हमें जो अनुभूति हो रही, जो आनंद आ रहा, जो अनुभव हो रहे हैं उन्हें शब्दों में बांधना तो मुश्किल है। उनकी ओर संकेत अवश्य करेंगे, पहले तो हमें देखने में लगा कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का इतना बड़ा शांतिवन परिसर है। मुझे लगता है यह संस्था नहीं एक शहर है, पूरा का पूरा शहर। और इतने बड़े शहर को मैनेज करने के लिए, व्यवस्थित करने के लिए पूरा का पूरा स्टाफ होता है और फिर भी शहर में कोई न कोई न्यूनता, हलचल बनी ही रहती है। मगर इस परिसर में आकर हमने किसी को मालिक देखा ही नहीं। मालिक कौन है यही पता नहीं लगा। इसका प्रबन्धक कौन है यह पता नहीं लगा अभी तक। उसके बावजूद भी अव्यवस्था नाम की कोई चीज़ नज़र नहीं आई। सारी की सारी व्यवस्थायें हैं। इतनी साफ-सफाई है कि हज़ार आदमी लगा दें तो भी इतनी साफ-सफाई न हो। इतनी शांति है, सारे के सारे साधक अपनी साधना में लगे हुए हैं और कहीं अव्यवस्था नहीं है। भोजन के समय पर भोजन हो रहा है। और निवास बहुत बढिय़ा, साथ ही भोजन बहुत बढिय़ा, चाय, दूध, दही जो चाहे वो समय से उपलब्ध हो रहा है और ऐसे हो रहा है जैसे कोई अदृश्य शक्ति कर रही हो। यहाँ हमने कई अलौकिक वस्तुओं का दर्शन किया है। कहते है जिस हॉल में हम बैठे हैं वह पूरे एशिया का यह पहला ही ऐसा हॉल है, पिल्लरलेस, जिसमें कोई खंभा नहीं है। यह अलौकिक है। और उससे भी अलौकिकता एक और है। कहते हैं एक बार दिल्ली से मुम्बई एक ट्रेन जा रही थी। वहाँ दो माताएं सफर कर रहीं थी। एक प्रतियोगिता हो रही थी कि जो सबसे बड़ा झूठ बोलेगा उसे सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जायेगा। एक व्यक्ति कहता है सबसे बड़ा झूठ मैं बोल सकता हूँ। तो बोले, बोलो। दिल्ली से मुम्बई ट्रेन जा रही थी उसमें दो मातायें पास-पास बैठी थी और दिल्ली से मुम्बई तक उन्होंने आपस में कोई बात ही नहीं की। बोलो इससे बड़ा झूठ कोई हो ही नहीं सकता कि दो माता और बात न करे, असम्भव! यह सबसे बड़ा झूठ था। लेकिन हमने झूठ को भी यहाँ झूठ पाया कि इस हॉल में पच्चीस हज़ार की कैपेसिटी(क्षमता) वाला सत्संग हॉल है। जहाँ पच्चीस हज़ार लोग बैठे हुए हों और वहाँ मंच से एक बार भी अनाउन्स करना पड़ता है आपस में बात मत करो, शांति बनाये रखो, प्रेम से सुनो, यह कहते हमने सुना ही नहीं। इन लोगों को शांत किसने रखा है यह भी एक एशिया का क्या पूरे विश्व की आश्चर्यजनक घटना है। इनमें शांति किसने प्रदान की हुई है।
यहाँ के लोगों से भी मैं मिला। मैं क्रइन्डिया वनञ्ज सोलर प्लांट में जयसिम्हा भाई के साथ भ्रमणकर रहा था। अपने यहाँ जो बड़ी बिल्डिंग है- आनंद सरोवर है, तपोवन है मैं यहाँ सब तरफ गया। लोगों से बात भी की और प्लांट में जो प्रमुख व्यक्ति है, जो इन सबको देख रहे हैं तो मैंने पूछा कि आप क्या करते हो? तो बोले इनको देखता हूँ, तो मैंने कहा आप तो यहाँ बड़ा काम कर रहे हैं, तो कहा मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ, तो फिर मैंने पूछा तो फिर कौन कर रहा है? तो बोले बाबा कर रहा हैं।
यहाँ जो पत्रिका निकलती है उनके सम्पादक महोदय से बात हुई। मैंने कहा कि आप बहुत अच्छा प्रकाशन कर रहे हैं, बहुत अच्छा सम्पादन कर रहे हैं तो उन्होंने भी कहा कि मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ, बाबा कर रहा है। अपने जो भोजनालय प्रमुख हैं उनसे मिला तो उनसे पूछा कि इतने बड़े लोगों की व्यवस्था आप कर रहे हैं, आप तो गजब का काम कर रहे हैं तो उन्होंने भी यही कहा कि मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ, वो तो बाबा कर रहा है। यहाँ दूध विभाग में गया, उनसे मिला और उनको कहा कि आप कैसे मैनेज करते हैं, इतने लोगों को? किसको छाछ चाहिए, किसी को चाय, किसी को दूध, किसी को आईसक्रीम चाहिए यह तो बड़ा मुश्किल काम है तो बोले मैं कुछ नहीं करता हूँ, बाबा करता है। सारे जिन पर विशेष दायित्व है, वह सारे के सारे विनम्र दिखाई दिये हैं। इतने विनम्र कि इनके पास अहंकार नाम की चीज़ ही नहीं। इतने झुके हुए हैं तो मुझे लगा कि इतने झुकेक्यों हैं! मैं दादी जानकी जी के निवास स्थान पर भी गया था। और वहाँ हंसा बहन जी मिली तो उसने कहा कि दादी जी कहती हैं क्रझुक-झुकञ्ज माना कि विनम्र बनो, मितव्ययी बनो, फिज़ूल खर्च मत करो। तो उनका जो शब्द सुना था झुक माना विनम्र बनो और विनम्र कौन व्यक्ति बनता है जिस वृक्ष पर फल आता है तो वह वृक्ष झुक जाता है। फलदार वृक्ष ही झुकता है और निष्फल वृक्ष जो है वो अकड़ के खड़ा हो जाता है। तो सारे के सारे झुके हुए हैं क्यों, क्योंकि इन्होंने कुछ पाया है, इनकी कुछ न कुछ अनुभूति है। ये इतना सम्भव नहीं है कि कहने से कोई व्यक्ति झुक जाये, कहने से चुप हो जाये, कहने से शांत हो जाये। इनकी जो साधना है, इनके अन्दर कुछ है। यहाँ देखने से लगता है कि यहाँ ईश्वरीय शक्ति, बाबा की शक्ति, ये सारे के सारे काम एक अदृश्य शक्ति कर रही है। वो अदृश्य शक्ति कौन, वो बाबा की शक्ति है। जो सारे के सारे काम कर रही है।
यज्ञ की वरिष्ठ दादियां भले ही साकार में न हों। किन्तु वे सूक्ष्म में हमारे साथ यहीं हैं। चाहे दादी प्रकाशमणि जी हों, चाहे दादी गुल्ज़ार जी हों, या फिर दादी जानकी जी। वरना तो चार बुद्धिमान इक_े हो तो वहीं विघटन पैदा हो जाता है, वहीं खींचातानी पैदा हो जाती है। और यहाँ तो बुद्धिमानों का एक वर्ग है। ये दिव्य क्वालिटी वाला वर्ग यहाँ है। यहाँ अदृश्य शक्ति कार्य कर रही है, ये मैं यहाँ अनुभव कर रहा हूँ। क्योंकि यहाँ फाउण्डेशन ही पवित्रता के आधार पर है। मैं जिससे भी मिला उन सबका अनुभव ये है कि यहाँ सभी कहते हैं कि बाबा ने कहा ब्रह्मचर्य का पालन करो, पवित्र बनो। फिर मैंने आगे समझने की कोशिश की तो यहाँ पर घर-गृहस्थ में रहकर पवित्र जीवन की साधना करना ये कोई चमत्कार से कम नहीं है। ये महान कार्य है। राजमार्ग पर चलना तो आसान काम है, रोड के ऊपर तो कोई भी दौड़ सकता है लेकिन कांटों से भरे मार्ग पर चलना और दौडऩा जिसमें फिर कांटे भी न चुभें, ये एक विशेषता है। यह सारा कार्य ब्रह्माकुमारी संस्थान बाबा ने, दादियों ने, दीदीयों ने बखूबी निभाया और अब हमारी ये सब दीदीयां इस कार्य को बखूबी आगे बढ़ा रही हैं। यह सारे के सारे धन्यवाद के पात्र और आदर के पात्र हैं।
श्री सिद्धपीठ पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी कौशल किशोर दास जी,भरतपुर