एकाग्रता का महत्त्व

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एक महिला हर रोज़ पूजा करने के लिए मंदिर में जाती थी। लेकिन वो अपनी पूजा सही से नहीं कर पाती थी। वो महिला एक दिन परेशान होकर मंदिर के पुजारी के पास जाती है और उनसे कहती है कि कल से मैं पूजा करने के लिए मंदिर में नहीं आऊंगी।
पुजारी ने उस महिला से पूछा कि क्यों? महिला ने उस पुजारी को कहा कि मैं हर रोज़ मंदिर में आती हूँ और देखती हूँ कि यहाँ लोग आते हैं और फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं। कुछ लोग ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान बना दिया है और कुछ लोग तो भगवान की पूजा कम और पाखंड ज्य़ादा करते हैं।
इन सब लोगों से डिस्ट्रैक्ट होकर मैं अपना मन पूजा में नहीं लगा सकती हूँ और इसलिए मैंने ये तय किया है कि मैं कल से मंदिर में नहीं आऊंगी। पुजारी ने उस महिला से पूछा कि आप अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या मेरे कहने पर एक काम कर सकती हो? महिला ने कहा कि जी ज़रूर आप बताइये मुझे क्या करना है।
पुजारी ने महिला से कहा कि आप एक गिलास में पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइये लेकिन शर्त यह है कि गिलास का पानी गिरना नहीं चाहिए। महिला ने कहा अच्छा ठीक है मैं वैसा करती हूँ। थोड़ी ही देर में महिला ने एक गिलास में पानी लेकर वैसा ही कर दिखाया। उसके बाद पुजारी ने महिला से पूछा कि क्या आपने मंदिर में किसी को फोन पर बात करते हुए देखा, किसी को पाखंड करते हुए देखा या फिर किसी को मंदिर में गपशप करते हुए देखा?
महिला ने पुजारी से कहा कि जी नहीं मैंने कुछ भी नहीं देखा। फिर पुजारी ने कहा कि जब आप परिक्रमा लगा रही थी तब आपका पूरा ध्यान गिलास पर ही था कि इसमें से पानी ना गिर जाये। इसलिए आपको कुछ भी नहीं दिखाई दिया।
इस गिलास की तरह ही आप अब से जब भी मंदिर में आयें तो अपना ध्यान सिर्फ भगवान में ही लगाना फिर आपको कुछ नहीं दिखाई देगा। आपको दूसरी चीज़ें तभी दिखाई देती हैं जब आप उन पर ध्यान देते हैं और अपने काम में एकाग्रता नहीं रखते हैं।

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