समय के साथ स्वयं को समर्थ बनाने के लिए तीन बातों का अभ्यास

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आने वाले समय में चुनौतियों को चांस में परिवर्तन करने के लिए स्वयं की शक्तियों पर वर्क करना होगा। बिना साधना व अभ्यास के हम उन चुनौतियों को फेस नहीं कर सकेंगे। स्वयं का अवलोकन कर अपनी शक्तियों को जाग्रत करना, उसे सही-सही रूप में समझना व समय पर उसका उपयोग कर सकें, इतनी तैयारी करनी होगी। इसके लिए मुख्यत: तीन बिंदुओं पर विशेष तौर पर नये साल के आरंभ में आत्मावलोकन करना ही होगा। पहले तो मैं अशरीरी आत्मा हूँ, इस अशरीरीपन के अभ्यास व प्रैक्टिस को बढ़ाना होगा। प्रकृति के पाँच तत्वों के साथ हमारा जन्म-जन्म का नाता रहा है। उसी प्रभाव से मुक्त होने के लिए बीच-बीच में आत्मा अलग व शरीर अलग है, ऐसे अभ्यास करना होगा। जैसे कहते हैं ना कि गाड़ी अलग, ड्राइवर अलग। वैसे ही मैं इस शरीर से अलग हूँ, चैतन्य शक्ति आत्मा हूँ, मैं इस शरीर का उपयोग कर श्रेष्ठ कर्म करता हूँ। कर्म करके फिर डिटैच की फीलिंग व एक्सपीरियंस करना है। दूसरा, देही अभिमानी की प्रैक्टिस भी बहुत ज़रूरी है। मैं देह के द्वारा कर्म करने वाली मालिक। कर्मेन्द्रियों का मालिक बनकर इनका उपयोग करना है व इनसे काम कराना है। देह अलग और मैं इससे कार्य कराने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ, इस अभ्यास को बढ़ाना है। तीसरा, बहुत महत्त्वपूर्ण विदेहीपन की स्थिति। जैसे कोई भी आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो दिखाई नहीं पड़ती किंतु जो सामान्य तरह से व्यक्ति वर्तन करता है, उससे हटकर जब उसका व्यवहार और चाल-चलन दिखाई पड़ता है तब महसूस होता है कि ये उसकी शक्ति नहीं, ये ताकत किसी और की है। जैसे ब्रह्मा बाबा में शिव बाबा की प्रवेशता हुई तो बाबा कहते कि ये मेरी ताकत नहीं, ये किसी और की शक्ति है। मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं, मैं तो ये कर नहीं सकता। हम साधना करने वाले साधकों को ये अच्छी तरह से पता है, परमात्मा निराकार है, अति सूक्ष्म है, इसीलिए वह शक्तिशाली भी है। जितना जो सूक्ष्म होगा, उतना ही वो शक्तिशाली होगा। जब परमात्मा परकाया प्रवेश करते हैं, हमें महसूस होता है, ये एक अलौकिक कार्य है जो कि मनुष्य के वश का नहीं है। वो दिखता तो नहीं लेकिन उसके बोल, उसकी चाल और उसके ज्ञान से हम पहचान पाते हैं। वो निराकार है, उसका कोई देह नहीं है, इसीलिए शक्तिशाली है। इसके अभ्यास के लिए जैसे परमात्मा विदेही है, जिसका कोई शरीर नहीं, वैसे ही हम जब परमधाम में थे तब हम भी विदेही थे। इस अवस्था का, इस स्थिति का अभ्यास करना और अपने में सम्पूर्ण शक्तियों को जाग्रत अवस्था में इमर्ज करना, इसको बढ़ाना है। वैसे तो बहुत बाते हैं लेकिन इन तीनों ही बिंदु पर अगर हम प्रैक्टिकली अभ्यास करेंगे तो हम किसी भी प्रभाव से मुक्त रह पायेंगे। चाहे व्यक्ति, वातावरण, वस्तु-प्रलोभन, पदार्थ व प्राकृतिक आपदायें, उन सभी से मुक्त होकर न सिर्फ साक्षी स्थिति में रहेंगे अपितु उनको सकाश भी दे पायेंगे। क्योंकि आने वाले समय में हम ब्राह्मण आत्माओं को, हम ईश्वरीय संतानों को विशेष दो रूप में पार्ट प्ले करना है वो है साक्षी व सकाश देने वाला। माना औरों को मदद कर उन्हें भी इन परिस्थितियों के प्रभाव से मुक्त रखना, ये दायित्व हमारा होगा। अपने मन की शक्ति व संकल्प शक्ति को जानना व उसके महत्व को समझना होगा। क्योंकि हम जब आत्मावलोकन करेंगे तो हमें समझ में आयेगा कि रोज़मर्रा की जि़ंदगी में हमारी संकल्प शक्ति औसतन 70 प्रतिशत व्यर्थ में चली जाती है, खर्च होती है। हम मोटे तौर से सिर्फ 20-25 प्रतिशत ही शक्तियों का उपयोग करते हैं। तो व्यर्थ से स्वयं को बचाना है, उसके लिए हमारे मन और बुद्धि रूपी तिजोरी में श्रेष्ठ संकल्पों को जमा करना है। जितना श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना हमारे पास होगा उतने हम समर्थ भी होंगे और साथ-साथ समय पर हम उनका उपयोग व प्रयोग भी कर सकेंगे। इसके लिए ज्ञान श्रवण कर, उसका चिंतन-मनन और मंथन करें। तो इस तरह से नये वर्ष में विशेष पार्ट प्ले करने के लिए स्वयं को तैयार करें।

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